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________________ संधि २५ साव। धुवयं-एउ कहेवि वणिदें नं पच्चक्ख सिरि । __ पढम कंत परिपुच्छिय नामें मित्तसिरि ॥ जंभेट्टिया--अक्खहि पिययमि भुवणपवित्तहो । कारणु अणुवमि नियसम्मत्तहाँ ।। सा कहइ कंत पुरि रायगेहि सुंदरधरसिहरासन्नमेहि। पुहईवइ परबलनियरजूरु नामेण अत्थि संगामसूरु । तहो कणयमाल कमणीय देवि नं थिय रइ तियमयवेसु लेवि । तत्थेव वसइ वणि उसहदासु नामें जिणयत्त कलत्त तासु । सोहग्गसील विणयहिँ अहीण सा वंझ लया इव फलविहीण । एक्कहिँ दिणि नियपइ निरुवमान अवसरि कर जोडेवि वुत्तु ताण। १० तिहुयणहो धम्मु रयणिहिँ मियंकु कुलमंडणु नंदणु निक्कलंकु । संतइ विणु तेण विणासु जाइ पिय भणमि तुम्ह जइ चित्ति ठाइ । परिणिज्जउ जेण हवेइ पुत्तु पायन्निवि वणिवइणा पउत्तु । घत्ता--पंचासण वोलीणण मुवि परत्तहिउ । अवरु करंतु हसिज्जइ नरु जिह गहगहिउ ।।१।। १५ जंभेट्टिया-भासइ पिययमा रायवसागयं । किज्जइ कम्मु तं जं [न] उवहासयं ।। पडु जाविउ एम भणेवि कंतु नियचित्तें समउ करेवि मंतु । तेत्थु जे णियतायो तणिय धूय जिणदासहो बंधुसिरीह हूय । सावत्तिय वहिणि मणोहिराम कणयाहदेह कणयसिरि नाम । परिणाविउ मग्गिवि समिसालु गउ सुह माणंतहो थोउ कालु । एक्कहिँ दियहम्मि वहंति नेहु बंधुसिरि समागय दुहियगेहु । आलिंगिवि विरइयविणयजुत्ति पुच्छिय वइसारिवि तार पुत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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