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२६६ ] सिरिचंदविरइयउ
[ २४. १५. ३-- वत्तउ वणिवरेण नियकतउ
तइयहुँ हउँ हुउ दिढसम्मत्तउ । एउ सुणेवि सव्वु संतुट्ठहिँ
ताहिँ पउत्तउ दंसणपृट्ठहिँ । पिययम अम्हेहिँ मि आयनिउ
दिट्ठउ सुट्ठ एउ अणुमनिउ । सद्दहाणु पत्तियमु निरुत्तउ
ता कुंदाइलयारा पउत्तउ । तुम्हहिँ सुयउ न दिट्ठउ कहियउ
भासिउ सुट्ठ नेव सद्दहियउ । सद्दहामि पत्तियमि न रोचमि
जं किउ तुम्हहिँ तं नउ फासमि । घत्ता-एहु सुणेवि पहु चिंतइ समंति रोसंगउ ।
पेच्छिवि तं सपउ देप्पिणु महु ताउ तवंगउ ।।१५।। १०
पुरु परिवारु देसु विभयकरु
जाणइ सव्वु कोइ तं वइयरु । किं न एह पडिवज्जइ पाविणि
दुट्ठसील वणिनाहहो भाविणि । मइँ पहाण एयहे हयविग्गहु
सइँ हत्थेण करेवउ णिग्गहु । चितिय चोरेण वि महु ताएँ
तिसियएण सूलायकाएँ। मग्गिउ वणि जिणयत्तउ पाणिउ तेण वि तहो गउग्राउ वियाणिउ । ५ मंडिवि मिसु उवयारहो कारणु
दिन्नु मंतु दुग्गइविणिवारणु । तासु पहावें सुरु संजायउ
वणिउवसग्गु मुणेवि इहायउ । मायइँ बलु विणिवाइउ राणउ
भेसावियउ भएण पलाणउ । मं भीसिउ वणिणा सुरु सामिउ
हूयउ सुहि महुरापुरसामिउ । देवेण वि वणिनाहु नामंसिउ
नियवित्तंतु असेसु पयासिउ ।। प्रायन्नेवि सवेएँ लइयउ
नरवइ पुरु परियणु पव्वइयउ । मइँ वि एहु पच्चक्खु णियच्छिउ
एयहे पर पडिहासइ कुच्छिउ । घत्ता-सिरिचंदुज्जालिय कह एह ण कसु पडिहासइ ।
एसा दृट्ठमइ ण मुणहुँ कि कारणु दूसइ ।।१६।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ।।
मुरिणसिरिचंदपउत्ते कहकोसे एत्थ को मुइकहाए । रुप्पबुरसग्गलाहो एसो चउवीसमो सग्गो ।
॥संधि २४॥
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