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कहकोसु...
९मापण
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२४. १५. २] एउ सुणेवि विसेसें तट्टउ
नासिवि निवइ गुहार्ह पइट्ठउ । तहिँ मुणिमज्झि वणिंदु अकुच्छिउ धम्मकहाउ सुणंतु नियच्छिउ । ... परितायहि परिताय हि प्रायो
भो जिणयत्त मित्त ससहायहो । । ५ एम भणे वि विणीउ हवेप्पिणु
थिउ सेट्टिहे समीवि वइसेप्पिणु । ... इयरु वि तामाइउ प्रारुढउ
भासइ एहु महीवइ दुट्ठउ । मा रक्खहि मा रक्खहि मारहुँ
देहि देहि जिणयत्त वियारहुँ । निवि वणीसरेण मयगारउ
जाणिउ देउ विउव्वणसारउ । अन्नहो एहु पहाउ न दीसइ
अन्नहो माहुरराउ न नासइ इय चितेवि पउत्तु अजुत्तउ
हम्मइ जं निलिप नासंतउ । खमहि भाय रायहो भयधत्यहाँ
निच्छउ मंडणु खंति समत्थहो । घत्ता-एउ सुणेवि सुरु परिहरिवि वेसु वेयालउ ।।
__ चितियमित्तु हुउ अणुवमतणु सोहग्गालउ ।।१३।।
१४
देवि पयाहिण पढमु वणीसरु
वंदिवि वंदिउ तेण मुणीसरु । वुत्तु निवेण देव देवालय
विणयजुत्ति किं नत्थि सुहालए। मेल्लिवि मुणि महिमाग महल्लउ
वंदिउ जेण गिहत्थ पहिल्लउ । जाणमि विणउ सुठ्ठ भासइ सुरु
निवइ नवेवि देवु महरिसि गुरु । पुणु साहम्मियाहँ सुहलेसहँ
किज्जइ इच्छायारु असेसहं ।। किंतु एहु महु गुरु पहिलारउ
पणमिउ पढमु तेण सुहयारउ । पुच्छिउ पुहईसें किह हुउ गुरु
कहिउ सुरेण असेसु वि वइयरु । पुज्जिउ परमविहइश वणिवइ
वारिय पावहो पइँ महु दुग्गइ । कहिँ हउँ कहिँ देवत्तणु सारउ
सामिय एउ पसाउ तुहारउ । तुहुँ निक्कारणु परउवयारिउ
पइँ हउँ दुक्खसमुद्दहो तारिउ । १० एवंविहवयणेहिँ थुणे प्पिणु
थिउ अग्गइँ कर मउलि करेप्पिणु । घत्ता-पेच्छेवि अच्छरिउ अवसरहिं वि विभियचित्तहिँ ।
लइउ निवेण तउ सहुँ सेट्ठिमंतिसामंतहिँ ॥१४॥
__ सहुँ सम्मत्तें दूसियदुन्नउ
देवु वि दिढसम्मत्तु लएप्पिणु
केहिँ वि सावयवउ पडिवन्नउ । गउ सगहो मुणिगणु पणवेप्पिणु ।
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