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________________ २६४ ] अवियारवत्तु सिरनिहियहृत्यु पुव्वज्जिएण भासंति जोइ संवेयजुत्त अच्छा रिसी वित्तंतुकहिउ एत्त हे चरे हिँ आरुट्ठ राउ समग्र देउ हरहुँ विधु सुहँ विपयंडु सावलेव तं तणु व गणेविणु ताम लट्ठि भावि भयंकर केण वि रायहो वत्त पणारिय कोइ महाभडु घरि वणिकेर जमदूएण व भामियदंडें श्रान्नेवि नरिंदु पलित्तउ जें भडयणु कयंतपुरु पाविउ एम भणेपिणु परवलसाहणु जे जे पइसहिँ ते ते वारइ ताम जाम बलु सयलु विनिट्टिउ Jain Education International सिरिचंदविरइयउ घत्ता -- किंकर णरवइहे पइसंत तेण अणिवारिय । नाइँ मुणीसरेण मणदुष्परिणाम निवारिय ॥११॥ रे रे दुट्ठ राय कहिँ नासहि चितइ जो वणिवइहि विरूवउ १२ [ २४. ११. ३ कुसुमालु णिएप्पिणु पाणचत्तु । भवदुक्खलक्खना सणसमत्थु । फुडु लधु समाहिल मरणु तेण । ५ अन्न हो वत्थ एरिस न होइ । इय चितिवि जत्थ समाहिगुत्तु । गउ तत्थ सेट्ठि पणमियससीसु । उववासु समाहिनिमित्तु गहिउ । उवइद्धु सव्वु संगयकरेहिँ पेसिउ घरु ल्हसहुँ नरनिहाउ । आसणकंपेण सुणेवि भेउ । नरवेसु करेष्पिणु पत्तु सिग्घु । थिउ घरदुवारि करकलियदंडु | घत्ता -- वेसु निसाय रहो नासंतहो तुरिउ तहो १३ किरपइति जाम चप्पेविणु । मायइँ मारिय नरवइकिंकर । पहु पाइक्क तुहारा मारिय । अच्छ विग्घु व सिद्धिदुवार । तेणाय पाइक पयंडें । चित्तभाणु तुप्पेण व सित्तउ । हँ महुँ जाइ ज्जु सो पाविउ । सइँ सन्नज्झिवि प्राउ ससाहणु । दंड पहारें सुरु संघारइ । नरवइ पर एक्कंगु परिट्ठिउ । भीयरु करेवि रोसाविय । पुट्ठिहे अमरु पधाविउ ॥ १२ ॥ निच्छउ अज्जु जमाणणि पइसहि । तासु हयासहो हउँ जमदूवर । For Private & Personal Use Only १० १५ ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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