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________________ २५ ६. ७ ] कहकोसु [ २६६ तत्थायउ वारि पइठ्ठ ताण आलोइउ सिवभत्तासयाए। कावालिय मइँ वि अणेय दिट्ठ . पर एयहां का वि अउव्व चेट। १० निच्छउ एयाउ समीहियत्थु पाविज्जइ वारिज्जइ अणत्थु । इय चितिवि भत्तिय तासु भिक्ख सा अणुदिणु देइ अणेयभक्ख । घत्ता-अइभत्तिभरेण वियाणवि परिणइ तहो तणिय । धुत्तें तेणेक्कहिँ दिणि बंधुसिरी भणिय ॥४॥ जंभेट्टिया--अम्हइँ माइन विज्जासिद्धय । मंत झाणजोएहिँ समिद्धय ।। भुवणम्मि नत्थि किंचि वि असझु संभवइ कज्जु जइ कि पि तुझ । तो जाणावेज्जसु सुणिवि वुड्ड उल्लवइ रुयंती दुब्वियड्ड। महु तुज्झ पसाएँ परममेह संपडइ सव्वु पडिवन्ननेह । ५ पर एत्तिउ कज्जु महंतु पुत्त तुह बहिणि अणोवमगुणहिँ जुत्त । कणयसिरि नाम कमणीयकाय सा एक्का धुत्तिए करिवि माय । वंचिय हउँ परिणाविउ सणाहु एवहिँ पुणु थिय बंधेवि गाहु । अहनिसु जिनमंदिरि कयनिवास. मेल्लइ न मुहुत्तु वि पिउ हयास ।। नामें जिणयत्ता दुट्ठभाव सा मारिज्जइ जइ कह व पाव । १० तुह ससह होइ तो गेहवासु ता निग्गय गिर कावालियासु।.. घत्ता----उच्छय होहि म मायरि चितिउ करमि तउ । परु मारेवइ अम्हहँ संक मणा वि नउ ।।५।। जभेट्टिया--निसि भूयहँ दिणे हेमसिरीहियं । ___ मारमि सा फुडं करमि तवेहियं ।। तेलोक्कवसंकरि पउर विज्ज .. साहेवि अंब वेयालविज्ज । जमपुरहो पाव जइ सा न नेमि सत्तच्चिहे तो नियदेहु देमि । निसुणेवि एउ बंधवसिरीण सो भणिउ हसेवि पसंसिरी। . ५ भयवंत समुदु सहाउ जासु कि जंति पियास पाण तासु । तुहुँ जासु पसन्न महाणुभाव.... निच्छउ कहिँ तासु किलेस ताव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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