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जो एवहिँ कयभुवणाणंदहो मोहणाइ विज्जजण सिद्धउ रूप्पखुराइ पुरंधि जणियउ सो संपइ इह वट्टइ तक्करु
अरुहासु हउँ सुउ तहो केरउ एउ असे वि विभियचित्ता कहइ सेट्ठियन्नहिं भामउ एक्कहिँ वासरि जूउ रमेष्पिणु विहिँ पहरहिँ चोरियपरचंदिरु तामसगंधाणियभसलालिहे रायरसोयसमीवि समायउ नयणइँ अजणेण प्रजेप्पिणु साउ णुदिणु तहिँ भुंजइ
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सिरिचंदविरइयउ
पत्ता -- सेट्ठि वि नरवइहे सव्वण्डु साहुपयभत्तउ । वल्लहु जिणमइहे जिणयत्तु गुणो हि होतउ ||६|
पुन्नवंतु तुहुँ सुरहँ वि वल्लहु भणिउ निवेण कवणु महु चितणु एत्तिउपर महुँ भवखउ दिज्जइ भुंजमि चउगुणु नियग्राहार हो जाणमि अवरु को विकि जीवइ वयणु एउ निसुणेवि सयाणउ अंजणसिद्धु कोइ होसइ खलु एम भणेवि वियाणियसच्चें भोयणवेल हे भोयणसाल हे
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ट्ट मंतिपाणु नरिदहो । चोरु वि रूप्पखुरु त्ति पसिद्धउ । नंदणु तो सुवन्नखुरु भणियउ । साहसप सुहवि भयंकरु ।
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२४. ६.७
तुम्हहँ नयणानंदजणेरउ । थिउ ते तिन्निवित्थु सुणता । अप्पडिमल्ल रुप्पखुरनामउ । जित्तउ दीणाणाहीँ देष्पिणु । भुविखउ जाम जाइ किर मंदिरु । कूरहो परिमलु उत्तमसा लिहे । अग्घाइवि प्रसन्न उ जायउ ।
घत्ता - तो मंतीसरेण एक्कहिँ दिणि वइरिवियारणु । पुच्छिउ पुरिसहरि कहि दुब्वलत्ति किं कारणु ||७||
उहि हुँ राएँ भुजेपणु । राउ वि पुन्निमराउ व भिज्जइ ।
कवण चित तुह किंपि न दुल्लहु । जसु सहाउ तुहुँ क्यसुहमंतणु । जेमंत हँ विन अग्घा इज्जइ । तो विनतित्ति हवेइ सरीर हो । तेणुयरग्गि मज्भु नउ नीवइ । चितइ मंति मंतिविहिजाणउ । जेणेरिसु महीसु किउ दुब्बलु । किय किय तहो धरणत्थु श्रमच्चें । रविकुसुमच्चणु रइउ विसाल है ।
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