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________________ ५ २४. ६.६] कहको चोज्जु अउव्व निएहँ विसेसें तं पडिवन्नु तास मंतीसें। चलियालक्ख होवि ससभावइ विनि वि सुक्कविहप्फइ नावइ । नयरब्भंतरि चोज्जु नियंतहिँ अग्गर चोरु नियच्छिउ जंतहिँ। अंजणविज्जाविहवस मिद्धउ कंचणखुरनामेण पसिद्धउ । तहो अणुमग लग्ग गय तेत्तहे अरुहयासवणिमंदिरु जेत्तहे। तहो पायारसमीवि रवन्नउ वडतरु एक्कु अत्थि वित्थिनउ । चोरु चडेवि तत्थ थिउ राणउ मूलि परिट्ठिउ मंतिसमाणउ । घत्ता--तहिँ पत्थावें वणिनाहेण समुज्जलगत्तउ।। . अट्ठोवासिएण अट्ठ वि कताउ पउत्तउ ॥४॥ अज्जु वि वणही मुएवि निहेलणु रायाएसें गउ जुवईयणु । पुरिस वि विविहविणोयहिँ पट्टणि कीलमाण थिय वइरिपलोट्टणि । पुवकमेणम्हइँ तुम्हइँ परि णवपइसवि थियाइँ सुमणोहरि । कि अवराण सरायण कीला सहसकूडि एत्थेव जिणाला । उववासिय कयदुरियविग्रोएँ अच्छहुँ जिणजायरणविणोएँ। भासिउ ताहिँ एत्थ किं वुच्चइ एउ विसेसें अम्हहँ रुच्चइ । एह भणेप्पिणु पावविरत्तउ गयउ ताउ जिणभवणु सकंतउ । मंगलधवलगेयजयसद्दे पुज्जमहिम करिऊणाणंदें। अच्छिवि पयडियनिम्मलभावहिँ अवरोप्परु चिरु धम्मालावहिं। पुच्छियाउ वणिनाहें जायउ किह तुम्हइँ दिढ दंसणु जायउ। १० घत्ता-ताहिँ पउत्तु पिय तावक्खह तुम्हइँ अम्हहँ । पुणु परिवाडियए अम्हइँ वि कहेसहुँ तुम्हहँ ॥५॥ एम होउ निसुणह एयग्गउ । एत्थु जि आसिकालि परमेसरु जसमईए महएविण जायउ सो संपइ पयाउ अासासइ संभिन्नाइबुद्धिनामाणउ सुप्पह पिय सुबुद्धि सुउ केहउ वणि [-वरु] नियकह कहणहुँ लग्गउ । होतउ पमुदियउदउ गरेसरु । तहो सुउ उदिदोदउ विक्खायउ । दूरहो अरिबलु जासु पणासइ । मंति मंतसब्भाववियाणउ । ५ तासु विहप्फइ बुद्धिा जेहउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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