SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ ] सिरिचंदविरइयउ [ २३. २०. १०निच्छउः पइँ देवउ गरलू भजेवउ ताएण गलू । करिवि विवत्थ दिन्नधहिं सो संगहिउ पउरजहि । घत्ता--लोयसहासहिँ वेढियउ मारहुँ नियंतउ । पवलिहे अहिमुहु भयरहिउ सिसु जाइ हसंतउ ।।२०।। केण वि करुणाम नियच्छियउ पुरिसेण वडुउ सो पुच्छियउ । मारहुँ निजंतउ पुत्त तुहुँ किं कारणु करहि पसन्नु मुहु । तेणुत्तु बालु वप्पहो डरिउ सुहि होइ जणेरिहे अणुसरिउ । दोहँ वि भएण नरवइ सरणु तासु वि भउ रक्खइ पउरयणु । सुणु सुयण काइँ तहिँ करइ सिसु जहिँ देइ माय सयमेव विसु । भंजइ जणेरु कोमलु गलउ पुरलोउ वि हणइ सराउलउ । तहिँ कासु कहिज्जइ को सरणु तो वरि धीरत्तणेण मरणु । उक्त च–जस्स य पिदा गलयं बलेदि मादा विसं देदि । राया जत्थ विलुपदि के सरणं तेण गंतव्वं ॥ निसुणेवि एउ करुणामइणा मेल्लाविउ बाल उ भूवइणा । घत्ता–देवहिँ साहुक्कारु किउ सिरिचंदजसुज्जलु । पुज्जिउ सामि समिद्धिउ गोउरु हुउ निच्चलु ॥२१॥ १० विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ।। मुणि सिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते एत्थ कोमुइकहाए । तलवरकहाहियारे एसो तेवीसमो संधी ॥ ॥ संधि २३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy