SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. २०. ६ ]. कहवि एउ कुंभारकहाणउ तइयउ वासरु अवरु कहंतरु पहु वरधम्मुत्थि वरसत्तिहे सो कयाइ सामंतसहाय उ पसंतहो परमुच्छवसोहणे उट्ठा विजय गोउरु वासरे पुच्छिउ ताम महंतउ राएं तं सुणेवि जयदेव वच्चइ इस हत्थे माणुसु मारहि तो उट्ठए पउलि परमेसर भणइ राउ मइँ एउ न किज्जइ तुम्हइँ तुहिक्का पहु प्रच्छह म भणेपिणु धणु मेलाविउ देइ अम्ह जो माणुसु मारहुँ घत्ता - पडिय पोलि नियत्तु चितावन्नु ससेन्नु बहि Jain Education International कहको तो वरदत्ता भाविणिया सिवदत्ताइ य चत्तरया सा घोसण तिट्ठाधर हो प्प नंदणु एक्कु पहू तं निप्पणु पावपिउ जीवंताणं म्ह वरो जाहि जाहि मा करहि खणु तागंतूण सव्वलो ता हा गुण भहिप्रो १९ घत्ता- निद्दउ तेत्थु जे पुरे ग्रहु अवसउणु भणेपिणु । थिउ श्रावासेप्पिणु ।। १८ ।। उ भडु घरहो तलारपहाणउ ॥ कहइ सुबुद्धि सुणइ पुहईसरु | नयरिहे निरुवमसुहसंपत्ति । साहेव सत्तु महाबलु प्रायउ । पट्टणे देवाण वि मणमोह | गरुयलोहाहयचित्तउ । बंभणु ढक्कु एक्कु वसइ नामें वरदत्तउ ॥१९॥ [ २५७ fras पुणु प्रत्थमियदिणेसरे । कहि के मुट्ठइ पवलि उवाएं । भमि नाह जइ तुम्हीँ रुच्चइ । जइ तहो रतें बलि वित्थारहि । जाणमि कउलनएण नरेसर । ता पट्टणजणेण वोल्लिज्जइ । अम्हे करेसहुँ चोज्जु नियच्छह ! विउलो पुरे पहर देवाविउ । दिज्जइ लक्खु तासु दीणारहु । ढक्कणि सावि हु पाविणिया । नंदण सत्त पसूय तया । कहि सुणेवि वि वरहो । लेहु दिणा रलक्खु दुलहू । जंपइ समउं पियाइ पिउ । होसइ सुयणु सुवरो । वहि तं गहिऊण धणु । दत्तु नामेो । देवि दिणार लक्खु गहियो । For Private & Personal Use Only १० RESRUS ५ १० ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy