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________________ २५६ ] सिरिचंदविरइयउ [ २३. १६. ७तहिँ एवड्ड वार हउँ अच्छिउ कहि केरिसु निवेण पुणु पुच्छिउ । एत्थंतरि प्रायन्नइ भूवइ हंसकहाणउ कहइ महामइ । तद्यथा-दीहकालं वयं वुत्था पादवे निरुवद्दवे । मूलादो उट्ठिदा वल्ली जादं सरणदो भयं ॥ घत्ता-सप्पुरिसु व सउणासियउ सरतडि वित्थिनउ । एक्कु गहणि उत्तुंगतरु अस्थि रवन्नउ ।।१६।। तहिँ निवसंति मराल सुहालय कालकमेण विणिग्गउ मूलए। नियवि लयंकुरु भासिउ वडढें पुत्तपउत्तहिं अत्थविड्ढें । अहो उवएसु महारउ किज्जउ एहु चंचुनहरेहिँ खणिज्जउ । नं तो एण हवेसइ आवइ ताम तेहिँ उवहसिउ महामइ । बुड्ढ सहावें मरणही वीहइ सयलकाल जीवहुँ जि समीहइ। ५ एउ सडिंभहँ वयणु सुणेप्पिणु रायहंसु थिउ मोण करेप्पिणु । मुक्खु हिरोवएसु ण वि बुज्झइ पच्चेल्लिउ तासुवरि विरुज्झइ । वड्डिय वेल्लि ताहँ नं दुक्खहो कालें उवरि चडती रुक्खहो । ताण चडेवि पसारियवाहें उड्डिय पास निरंतर वाहें। सयल वि बद्धा थेरोवाएं मेल्लिय न वि मेल्लिय जमराएं । १० उक्त च–वृद्धवाक्यं सदा कृत्यं ये च वृद्धा बहुश्रुताः । पश्य हंसा वने बद्धा वृद्धवाक्येन मोचिताः ।। घत्ता-एउ कहेवि णराहिवरे गउ भवणही तलवरु । वीय दियह पुणाइयउ परियार्णवि अवसरु ।।१७।। पुच्छिउ राएँ चोरखयंकर रे जमपास पलो-[इउ] तक्करु । दिछै न कहिउ तेण महिपालो अच्छिउ वयणु सुणंतु कुलालहो । तद् यथा-जेण भिक्खं बलिं देमि जेण पोसेमि अप्पयं । तेण मे पट्ठिया भग्गा जादं सरणदो भयं ।। पढिउ सिलोउ एहु ता केण वि पुच्छिउ कहिउ सदुक्खें तेण वि। ५ ।। जीवमि हउँ सुहि मट्टियपिंडें तेण जि महु हय पट्ठि पयंडें ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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