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सिरिचंदविरइयउ
[ २३. १६. ७तहिँ एवड्ड वार हउँ अच्छिउ
कहि केरिसु निवेण पुणु पुच्छिउ । एत्थंतरि प्रायन्नइ भूवइ
हंसकहाणउ कहइ महामइ । तद्यथा-दीहकालं वयं वुत्था पादवे निरुवद्दवे ।
मूलादो उट्ठिदा वल्ली जादं सरणदो भयं ॥ घत्ता-सप्पुरिसु व सउणासियउ सरतडि वित्थिनउ ।
एक्कु गहणि उत्तुंगतरु अस्थि रवन्नउ ।।१६।।
तहिँ निवसंति मराल सुहालय
कालकमेण विणिग्गउ मूलए। नियवि लयंकुरु भासिउ वडढें
पुत्तपउत्तहिं अत्थविड्ढें । अहो उवएसु महारउ किज्जउ
एहु चंचुनहरेहिँ खणिज्जउ । नं तो एण हवेसइ आवइ
ताम तेहिँ उवहसिउ महामइ । बुड्ढ सहावें मरणही वीहइ
सयलकाल जीवहुँ जि समीहइ। ५ एउ सडिंभहँ वयणु सुणेप्पिणु
रायहंसु थिउ मोण करेप्पिणु । मुक्खु हिरोवएसु ण वि बुज्झइ
पच्चेल्लिउ तासुवरि विरुज्झइ । वड्डिय वेल्लि ताहँ नं दुक्खहो
कालें उवरि चडती रुक्खहो । ताण चडेवि पसारियवाहें
उड्डिय पास निरंतर वाहें। सयल वि बद्धा थेरोवाएं
मेल्लिय न वि मेल्लिय जमराएं । १० उक्त च–वृद्धवाक्यं सदा कृत्यं ये च वृद्धा बहुश्रुताः ।
पश्य हंसा वने बद्धा वृद्धवाक्येन मोचिताः ।। घत्ता-एउ कहेवि णराहिवरे गउ भवणही तलवरु ।
वीय दियह पुणाइयउ परियार्णवि अवसरु ।।१७।।
पुच्छिउ राएँ चोरखयंकर
रे जमपास पलो-[इउ] तक्करु । दिछै न कहिउ तेण महिपालो
अच्छिउ वयणु सुणंतु कुलालहो । तद् यथा-जेण भिक्खं बलिं देमि जेण पोसेमि अप्पयं ।
तेण मे पट्ठिया भग्गा जादं सरणदो भयं ।। पढिउ सिलोउ एहु ता केण वि
पुच्छिउ कहिउ सदुक्खें तेण वि। ५ ।। जीवमि हउँ सुहि मट्टियपिंडें
तेण जि महु हय पट्ठि पयंडें ।।
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