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________________ २३. १६. ६ निसुणेपिणु एउ प्रजाणमाणु इँ होंते वि खेमो उवाउ निच्छउ जणु अप्पायत्तु तेण किं भिच्चें अंतरदाइएण मंडेवि मिसंतरु को वि तासु इय चितिवि थिउ निहुयउ नरिंदु अच्छेवि कवि दियहइँ निवेण सहँ सुमइपुरोहें करिवि मंतु तेण वि भीएणावेवि तेत्थु दिट्ठइँ त हो नं भावियदुहाइँ गउ घरहो लेवि हुउ सत्थचित्तु त्याणि निविट्ठर पुहइपालु तु सव्वजणहो दव्वइँ घराइँ रे खल पहुकज्जालस्सभाव जाणिव क्खहि छिन्नु दव्व नं तो तुह तक्करनिग्गहेण तेत्तु पहयपिसुणावलेव Jain Education International कहको धत्ता - कड्ढेवि दव्वु तीहिँ वि जणेहिँ अन्नत्त थवाविउ । जपासह पेसेवि भड तक्खणि जाणाविउ ॥१४॥ १५ मइँ कुसुमाल मुणेवि कहेवउ भणि तेहिँ मा बीहहि बहुगुण लहिवि भरोसउ प्रवरहिँ वासरि सहहि सामि नविऊण नियच्छिउ जमपासेण भणिउ न विदिट्ठउ पढिवि सुहासिउ एक्कु मणोहरु [ २५५ रुट्ठ चित्ति वसुमइपहाणु । आरक्खियपाय पसाउ जाउ । किउ सरह जंपइ एउ तेण । सुहि सामि न होइ अ घाइएण । लहु करमि हयासह पाणनासु । गाउ घरहो विसज्जिउ पउरविंदु | हक्कारिवि मंति सुमित्तु तेण । निसि नियभंडारण खणिउ खत्तु । १० लोइ घरु खउ खत्तु जेथु । मणिपाउय जन्नविय नहांइँ । संजाउ विहाणुग्गमिउ मित्तु । सेवागउ वत्तउ कोट्टवालु । रक्खहि महु किं न मणोहराइँ । लइ सत्तदिणावहि दिन पाव । तो प्रत्थि निरुत्तर जीवियन्वु । अवहरमि पाण हयविग्गहेण । खम करहि निहालमि चोरु देव । घत्ता - एम भणेष्पिणु राउलहो नीसरिउ सभवणहो । उ भडुतं नरवइवयणु प्रक्खिउ पउरयणहो ||१५|| १६ तुम्हहिँ म साहेज्जु करेवउ । म्हइँ सव्व सहेज्जा सज्जण । गयउ वीरु लग्गहुँ प्रवसरि । तेण विदिट्ठ चोरु इदि पुच्छिउ । मइँ सव्वत्थ वि देव गविट्ठउ । दिउ पुरिसु कहंतु कहंतरु । For Private & Personal Use Only ५ ५ १० ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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