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________________ कहकोसु २३. ७. ६ ] . [ २५१ इय भणिवि खमाविउ पहयमारु आयन्निवि [धम्मु] अहिंससारु । सावयवउ लेवि नवेवि साहु गउ घरहो अराइमियंकराहु । पत्ता--दुठ्ठ भणेप्पिणु रायप्रण वित्थारेवि दीहउ । १५ नीसारिउ पावइ दुहइँ अवरो वि दुरीहउ ॥५॥ ता मुणि तहिँ होतउ गउ ससंघु गुरु दिठ्ठ नमंसिउ गुणमहग्घु । सुंदरमइ दुद्धरु तउ करंतु कालेण हूउ बहुरिद्धिवंतु । कोट्ठाइ चउव्विह सिद्ध बुद्धि उग्गत्तवाइ पंचविह सिद्धि । अणिमाइय अट्ठपयार रिद्धि तह चेव विउव्वण कयपसिद्धि । जल जंघ तंतु फल पुप्फ बीय आयाससेढि अवरट्ट बीय । चारणरिद्धीउ इमाउ तासु सिद्धाउ समासियसंजमासु। खेलोसहिप्राइउ प्रोसहीउ पंच वि हुयाउ नावइ सहीउ । अमयासवाइ रसलद्धियाउ चत्तारि वि जइणा लद्धियाउ । मणवयणकायबलु तिविहु जाउ आहारवसइ अक्खीणदाउ । इय रिद्धिविराइउ केवलक्खु उप्पावि नाणु तिलोयलक्खु । १० फणिनरसुरिंदचंदत्थुएहिँ पंचहिँ सएहिँ संजुउ सुएहिँ। घत्ता-मोक्खु कुमारगिरिंदे गउ जमराउ महामुणि । अजारामरु वाहारहिउ हुउ अट्ठमहागुणि ॥६॥ दढसुप्पो सूलहदो पंचनमोक्कारमेत्तसुदनाणो । उवउत्तो कालगदो देवो जादो महड्ढीओ ॥ [भ० प्रा० ७७६] तथा-उज्जयिन्यां दृढसूर्पनामा चौरः, शूलेन भिन्नाङ्गोऽपि पंचनमस्कारमात्रश्रुतज्ञाने उपयुक्तः मृतः सन् महान् देवो जातः इति तात्पर्यः । होतउ उज्जेणिहे जणमणोज्जि दढसुप्पु चोरु धणवालरज्जि। ५ विज्जंजणसिधु पयंडधामु गणियावसंतसेणाहिरामु। सा एक्कहिँ दिणि रयणिहिँ मणिट्ठ चिंताविय दुम्मण तेण दिट्ठ । पुच्छिय किं कारणु दुम्मणासि कहि कंति कंति सोहग्गरासि । सा भणइ रमण गयवरगईह जइ लहमि हारु वरु धणवईहे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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