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________________ २५२ ] तो हो सुहत्थी जीवियव्वु fro हि भद्दि मा करहि खेउ इ भणिवि पि निसि तहिँ पइट्ठ तेण तासु दिउ विरुट्ठ एत्यंतरि वंदिवि जिणवरिंदु बोल्लाविउ जयविक्खायनाम तु सुणु सव्वजीवोवयारि हउँ सुट्ठतिसाइ पाणिएण आलोप्रवि कंठालग्गपाणु भो बारहवरिसहिँ गुरु पसन्नु सो दुल्लहु पाणिहेउ भाइ जइ धरहि एक्कतो तुहुँ मुहुत्तु चोरेण भणिउ दे होउ एउ ता वणिवरेण तह भवभयंत सिरिचंदविरइयउ Jain Education International घत्ता -- बद्धु चित्तु जियंति घरेष्पिणु चउदिसउ भामेवि विहाण | सूलियहे पुहईवइप्राण ||७| सोहम्मि महिड्डिउ देउ जाउ ता सलिलु लेवि धणयत्तु पत्तु गउ जिणभवणहो एत्तहे चरे हिँ लूसहुँ वणिमंदिरु पहिय भिच्च ता ग्रासणकंपें मुणिवि हेउ थं भय थिय घरि पइसंत पत्ति वियलं बलु पाण लएवि नट्ठ त रक्खु रक्खु भासंतु सरणु उवसमिउ रो दरिसिउ सरूवु तं च्छिवि हईवइ ससेट्ठि सो भय भी विभियमणेहिँ [ २३. ७. १० [नं तो महु मरणु विजाणियम्बु । ] १० महि जिण माणमि नत्थि खेउ । महविहे हारु लए िनट्ठ । उद्घाइउ तलवरबलु निरुद्धु । ८ तेणितु निहालिउ वणिर्वारंदु | हो हो धणयत्त मणोहिराम । जिणवयणविसारउ सीलधारि । आसासहि तुरिउ पराणिएण । भाइ हियत्थु वणि जणपहाणु । तेज्जु एक्कु महु मंतु दिन्नु । महुलहु वीसरिवि जाइ । तो आणमि पायमि पर निरुत्तु । जाहि मित्त किं करहि खेउ । उवइ पंचनवयारमंत । घत्ता - गउ धणयत्तु निहेलणहो इयरु वि सुरलोयहो । सुमरिवि पंच पयक्खरइँ मुक्कउ दुहसोयहो ॥८॥ ९ १५ For Private & Personal Use Only ५ १० पेच्छह जिणिदधम्महो पहाउ । कुसुमालु निएप्पिणु पाणचत्तु । रोसिउ पहु सूइयवइयरेहिँ । धाविय निववयणें नं दइच्च । संपत्तु तुरिउ दढसुप्पदेउ । किउ घोरुवसग्गु नरिंदु झत्ति । पिणु जिदिमंदिरु पइट्ठ । पसरिउ वणीसह पुहइधरण | पुज्जिउ वणि देवें ह्यविरूवु । हुउ संजउ अवरु वि जणु सुदिट्ठि । १० सुलत्थु जेण पुज्जिउ जहिँ । ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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