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सिरिचंदविरइयउ
- [ २३. ३. १६अच्छंतस्स य गच्छंतएण अदिकक्कडस्स मउएण । भिन्नो सो पाहाणो निच्चं जुत्तेण घडएण ॥
२० घत्ता–कि परमत्थें मझु मणु पत्थरह वि निठुरु ।
जेणेक्कल्लउ परिभममि मेल्लेप्पिणु नियगुरु ॥३॥
इय चितिवि गुरुसामीव जंतु
दियहेहिँ साहु नियनयरु पत्तु । थिउ नंदणवणि हुय लोयजत्त
आसंकिउ मंति सुणेवि वत्त । एयंति नरिंदहो कहिउ कज्जु
तउ ताउ पुणागउ करहुँ रज्जु । जइ जाउ दियंबरु करिवि चाउ
निप्पिहु तो किं कारण इहाउ। पुणरवि खलेण पावप्पिएण
दीहेण भणिउ किं जंपिएण।। जामज्ज वि सामि न करइ भेउ
मारिज्जइ ता किज्जइ न खेउ। इय भणिवि वे वि करवालहत्थ
गय रयणिहिँ थिय पच्छन्न तत्थ । तावहि सज्झाउ लयंतएण
उच्चारिउ पावकयंतएण । प्रायड्डधाइ सयलु वि सिलोउ
निसुणेवि भणइ कयसत्तुसोउ । घत्ता-दीह वियाणिय मुणिवरेण अम्हइं एत्थाया।
किह मारेवउ इय भणेवि संकिय संजाया ॥४॥
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वइरि वि पुन्नेहिँ विमोह जाइ
पुणु अवरु पढिउ आधावधाइ । सहुँ दीहें चविउ सुणेवि राउ
पइँ भणिउ ताउ रज्जत्थु आउ । कोणिय महु बहिणि जगेक्कमित्तु तामायउ जाणावणनिमित्तु । उप्पलणालाइ भयावसाणु
मुणिभणिउ सुणेप्पिणु नरपहाणु । चितइ जाणेमि सया वि एहु
पाविठ्ठ मंति अवयारगेहु । एहन वि अवत्था पुत्तनेहु
भावेप्पिणु दूरुज्झियसिणेहु । पेच्छह भयवंतु तिलोयवंदु
सिक्खवहुँ समागउ मइँ मुणिंदु । परु सुग्गहिरो वि न होइ अप्पु
वरि निग्गुणी वि सुहि मायबप्पु । उक्त च-उपकारशतेनापि गृह्यते न परः क्वचित् ।
सुगृहीतः सुमान्यो वा यः परः पर एव सः ।। अफलस्यापि वृक्षस्य छाया भवति शीतला । निर्गुणोऽपि वरं बंधुर्यः परः पर एव सः ॥
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