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________________ २३. ३. १८ ] कहकोसु २४६ ] निसुणिवि मुणिवयणुवसंतभाउ गद्दहहो देवि सिरि सुयहो राउ । पंचहिँ सएहिँ नियनंदणेहिँ पव्वइउ समउ साहियमणेहिँ । उत्तमखमदमतवखीणगत्त सयल वि सयलागमपारु पत्त । ५ अक्खरु पउ सयलु वि संघु देइ पर यमनिवरिसिहँ न कि पि एइ । निंदइ अप्पाणउ विगयगव्वु बलि किज्जउ मुक्खही जीवियव्वु । अवियाणिय प्रायमसत्थभेउ किं किज्जइ संजउ निव्विवेउ । किं संघमज्झि अच्छमि निरुत्तु वरि वच्चमि पेच्छमि जइणतित्थु । इय चितिवि पुच्छिवि गुरु सुधम्म गउ पुत्वएसि जिणतित्थरम्मु। १० घत्ता-खरसंजमियत रहे चडिउ जवखेत्तमियारण। जंतु नियच्छिउ एक्कु जणु पहे दूसंचारण ॥२॥ पेच्छिवि जव खाहुँ समीहमाण रहु एत्तहिँ उत्तहिँ कड्ढ्माण । खर कुट्टिज्जंत निएवि तेण | किउ खंडसिलोउ तवोहणेण। आयड्ढध परियड्ढध पुणो वि समयड्ढध । लक्खिदो दे मया भावो जवं पत्थेह गद्दहा ॥ एण जि सो सज्झायाइयाउ किरियाउ करइ सुहदाइयाउ। ५ पुणु पुरपवेसि लिंकरुय दिट्ठ खेलंतहँ अड्डिय ताहँ नट्ठ। तं नियइ साहु ते नउ नियंति धावंति जाम अन्ने सयंति । ता मुणिणा वरु विरइउ सिलोउ हुउ नाणावरणहो किं वि लोउ । आधावध परिधावध पुणो वि समधावध । तुम्हेत्थ मंदबुद्धी छिद्दे पस्सह कोणियं ।। पुणरवि वियालवेला भेउ नीसरिउ निहालिवि चरणहेउ । कयजत्थत्थमियतिकालएण कि उ अवरु सिलोउ दयालएण। उप्पलणालसीदलंगो मा हिंडसु वियाले ।। अम्हादो नत्थि भयं दीहादो दिस्सदे भयं॥ अन्नत्थगएण निएवि कवि गड्डाउ सिलहे गामो समीवि । १५ कोड्डे पणिहारिउ पुच्छियाउ केणेमउ गड्डुलियउ कियाउ । जुवईहिँ कहिउ भयवं इमाउ कलसेहिँ थविज्जंतहिँ कयाउ । निसुणेवि एउ विभियमणेण किय गाह खणखें मुणिवरेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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