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________________ २२. १३. १५ ], कहकोसु [ २४५ बहु एवमाइ खब्भालियर वणि तो वि न झाणहो टालियउ । प्रायही उवसग्गहो उव्वरमि जइ तो परमत्थें तउ करमि । इय लेवि पइज्ज मणेण थिउ लेप्पेण नाइँ केणावि किउ । तहे खब्भालं तिहे अप्पवसी आसान समेउ गया सुनिसी । अरुणुग्गमि नउ साहारियउ अप्पउँ नहेहिँ पवियारियउ । थिय मोक्कलकेस विसंतुलिया धावह पोक्कार इ भिदुलिया । निसुणिवि गहियाउहु धाइयउ सहसा परिवार पराइयउ । पुच्छिउ परमेसरि काइँ इउ हा हा केणेरिसु कम्मु किउ। १० निसुणेवि एउ दुम्मियमणहो सा कहइ रुयंती परियणहो । नेच्छंति हयासें विद्द विया हउँ एहावत्थरे एण निया । घत्ता-पायन्नवि राएँ रोसवसेण भयंकरहें। आएसु समप्पिउ मारहु एहु सकिंकरहँ ॥१२॥ दुवई-नेवि मसाणि साणसिवसंकुलि छिदह सीसु प्रायहो। गय किंकर तुरंतु तं लेप्पिणु आएसेण रायहो । एत्तहे वत्त सुणेप्पिणु बोल्लग थामि थामि जणु धाहउ मेल्लए । हा हा एउ काइँ संजायउ आयहां दूसणु केम समायउ। किं मज्जायण वज्जिउ सायरु किं पच्छिमि उग्गमिउ दिवायरु। ५ किं संचल्लु सुरायलु ठाणहो किं गयणंगणु गउ पायालहो । किं जणु भग्गु कामसरजालहो कि संसारिउ हूउ विमुक्कउ किं संसारिउ कालहो चुक्कउ । खीणकसाउ कसायहो ढुक्कउ दंतउ कप्परुक्खु किं थक्कउ । किं संजायउ मरणु कयंतही हा हा किं गउ अमिउ विसत्तहो । १० अह कहमवि एउ वि संपज्जइ एयहो एउ न संभाविज्जइ । एम जाम जणु सयलु विसूरइ संधइ' विहि अंगुलियउ तूरइ । तावइ सारिउ तेहिँ जि सूलउ हरिविट्ठरु ता जाउ अमूलउ । घत्ता-तामेत्तहे पिउवणु नेवि तेहिं निठुरकरहिं । ___ असिलट्ठि पमेम्लिय तो गीवो निवकिंकरहिं ॥१३॥ १५ १३. १ संदइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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