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________________ २४६ ] कि नहल देवहिँ साहुकारु विरइउ पुज्जेविणु पाडिहरु तं पेक्खवि अविभियमणेण पर तो विन अच्छिउ पावमुक्कु तहो पय पणवेवि महाणुभाउ तहिँ देवी सुणेवि वत्त हुय रक्खसि पाडलिउरमसाणि मग्गणगणदिन्नसुवन्न नियरु तहिँ देवयत्तनामालियाई १४ दुवई – लग्गिवि पंचवन्न गलकंदलि हूय पसूणमालिया । वरपरिमलमिलंतमहुयरउलगुमुगुमुरववमालिया ।। Jain Education International सिरिचंद विरइयउ घत्ता - नीसेसु गोर संतु निहालियउ सो एहु सुदंसणु सुयणथुउ तं निणिवि देवयत्त भणइ परचित्तु लएवउ गरुयगई म खोहमि हो मुणिवरहो इय भवि खडाप्रवि प्राणियउ मुणि तिनि दियह खब्भालियउ थिउ होवि धीरु नं कट्ठमउ होएवि विलक्खा मेल्लियउ पयासिउ नियवित्तंतु विलासिणिहि । जाणिव गुण गउरउ किउ ताए वि सुहासिणिहि ॥ १४ ॥ दुवई - वसइ सुहेण जाम बहुदहिँ साहु [ २२. १४. १ कोणाहय दुहिसभारु । दिन्नउ मणिकंकणु हारु दोरु । मन्नाविउ राएँ परियणेण । विमलासय मुणिसामीवि ढुक्कु । जइ जाउ कप्पिणु सव्वचाउ | भीय गलिपास पाण चत्त । वाहे पाणावसाणि । नासेवि समागय कुसुमनयरु । थिय गणिय हे गेहि गुणालियाहे । १५ गुणमंडिय पंडिय ताम पत्त । विहरंतउ सो तवखीणगत्तो ॥ M पंडिसी संचालियउ । जसु लग्गिवि महु आगमणु हुउ । न कविल महवि किं पि मुणइ । लइ पेक्खहि पंडिy चारुमई । आणाकरु करमि पंचसरहो । घरवारु. देवि संदाणिउ । पर तो वि मणा वि न चालियउ । पाहणमउ नावइ लेप्पमउ । निसि ता मसाण घल्लियउ । धत्ता-हिँ साहु समंजसु सव्वाहारचाउ करिवि । थिउ पsिमाजोएँ मेरु व मुक्कझाणु धरिवि ॥ १५ ॥ For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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