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________________ २३४] सिरिचंदविरहयउ [ २१. ७. १ ५ अवरु वि अक्खमि भत्तिकहतरु आयनह मणु देवि निरंतरु । भारहवरिसि विजयविसए पुरु नामें पुहइतिलउ नं सुरउरु । अत्थि तम्मि पयवालु नरेसरु सूरदत्तु सेट्ठी गन्भेसरु । सुंदरीप तहाँ कंतण नंदण जणिय सत्त जणनयणानंदण । सव्वहँ धनंतरि लहुयारउ तहो सुहि बंभणु पाणपियारउ। तो संगेण सव्ववसणायरु हुउ धन्नतरि धम्मि अणायरु । चोरियान बहुवारउ पाविउ जणणगुणें निवेण मेल्लाविउ । पत्ता पुणु वि कुडुंबे चत्ता नीसारिय करिउरु संपत्ता । घत्ता-तत्थारक्खियहाँ जमदंडहीं के रण ।। संठिय वे वि जण पडिवक्खनिवारण ॥७।। न वियाणंति अन्नु कम्मतरु चोरिया जीवंति निरंतरु । साहुपसाएं संसयचत्तउ विविहावग्गहफलु संपत्तउ । जाणिवि वयविसेसु अणुराएँ पुणरवि सूरदत्तवणिजाएँ। जीववहे खणम्मि खंचिय मणु लइयउ पंचपनोसरणहो खणु । एक्कहिँ वासरि विन्नि वि रत्ति गय चोरियहे अत्थसंपत्तिहे। ५ हुए अवसउणि निवारिय गमणए थिय नाडउ नियंत सुरभवण । गरुयपरत्तिए नियनियगेहहो आगय सुहि आवासु सिणेहहो । सुविहाणत्थु जणेरिविसेसें समउ वहुल्लियाश नरवेसें । सुत्त नियच्छिवि मन्निवि परनरु कुविउ वीरु धन्वंतरि दुद्धरु। कड्ढिवि खग्गु जाम किर मारइ विन्नि वि वइवसपुरि पइसारइ । १० घत्ता--सुमरिवि गुरुवयणु सहसा अोसरिउ । सिक्कउ ताम तहिँ असिणा कत्तरियउ ॥८॥ भंडुत्तरणि पडेप्पिणु लग्गी उट्टिय सुंदरि ताम तुरंती तं निसुणेप्पिणु चत्तकसाएँ जाउ मसाणऱ्या माणुसु निव्वउ गुरुसद्देण निद्द तहे भग्गी । धन्नंतरि चिरु जियउ भणंती । भणिय माय कयपरमविसाएँ । आयउ अज्जु होंतु तुम्हहँ खउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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