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________________ • २१. ६. १३ ] ' कहको घत्ता -- काणि कालनिहु दोणेण निरिक्खिउ । पुच्छिउ चाउ पइँ कहो पासिउ सिक्खिउ ॥४॥ भणि तेण गुरु दो महारउ तासु पासि मइँ मुणिउ सरासणु पण दोणु दोणु उवलक्खहि भासइ भिल्लु किं न परियाणमि गुरुवणेण तेण दक्खालिय एण मज्भु उवएसिउ घणुगुणु पत्थ भणिउ केम पइँ प्रायहो कहइ किराउ तिवाहिण देप्पिणु भमि महापहु मइँ प्रसासहि घत्ता -- एण कमेण महुँ धणु प्रहीणगुणु नेवि एउ किविकतें पेक्खु पुत्त देवाविहु भत्तहो तं न प्रत्थि जगि जनउ भत्तिप्र Jain Education International एव भणेवि समुन्नयघोणें हंसो दो तिलोयपसिद्धउ एउ सुणेवि भत्तिभरनडियउ हउँ सकियत्थु श्रज्जु उक्किट्ठउ इय भणेवि अग्ग थिउ भत्तउ दिज्जउ गुरुदक्खिण तेणुत्तउ मग्गिउ दाहिणहत्थं गुट्ठउ वियवसेण जेम तह सिद्धी ५ सयमेव जि आयउ । कुसलत्तणु जायउ ॥५॥ ६ वेएँ धणुवेण विसारउ । छुरिउ खग्गु गरि अरितासणु । किं एमेव सच्चर अक्खहि । निच्छउ जइ दावहि तो जाणमि । लेप्पपडिम नवमालोमालिय । एहु महारउ सामिउ बहुगुणु । सिक्खिउ पासि महीमयकायहो । हो परमपुज्ज विरएप्पिणु । दिट्टिमुट्ठिसंघाणु पयासहि । भणिउ धणंज ईसि हसंतें । होंति पसन्न देति वरु सत्तहो । पाविज्जइ पयत्थु पहयत्ति । जाणाविउ अप्पाणउ दोणें । कुरुisaगुरु गुणहिँ समिद्धउ । खीर कयंबउ पायहिँ पडियउ । जं चक्खु देव तुहुँ दिउ । उ सरेप्पणु गुरुणा वृत्तउ । जं मग्गहि तं देमि निरुत्तउ । तेण वि दिन्नु घणंजउ तुट्ठउ । चावविज्ज बहुभेयसमिद्धी । घत्ता -- अन्नाणत्तु तिह पलयहो जाएसइ । मोक्खविज्ज मुणिहे निच्छउ सिज्झेसइ || ६ || [ २३३ १० For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org F
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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