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________________ २३२ ] . सिरिचंदविरइयउ [ २१. २. ६अज्जुणपमुह कुमार सलील एक्कहिँ वासरि गय वणकील । खीरकलंबएण पारद्धिहे नीसरिएण मयामिससिद्धिहे । निसुणिवि सुणहँ सदु सरु मुक्कउ सो वि तासु मुहकूहरहो ढुक्कउ । विध्दु साणु किंकंतु पधाइउ जहिँ कुमार तहिँ ताउ पराइउ । घत्ता-तं पेक्खि वि नरु विभिउ को एहउ । सद्दवेहकुसलु जेणेहु समाहउ ॥२॥ ता पंथेण तेण सयल वि गय सोणियचिण्ड नियंता निग्गय । थोवंतरि धणुबाण [ ........... .............. ] । सदु सुणेवि' साणु मइँ विद्धउ पुच्छइ पुणु विहसेवि कइद्ध उ । को तुहुँ सद्दवेहु कहिँ सिक्खिउ कहइ कुमारहो भिल्लु सुसिक्खिउ । हउँ पहु प्रायहे [रण्णह] राणउ नामें खीरकयंबु पहाणउ । ५ गुरु महु दोणायरिउ भडारउ किउ तें धणुविन्नाणविसारउ । कहि केरिसु पत्थेणाउच्छिउ दोणे तुज्झवएसु पयच्छिउ । ता ससिवेहपहूइ पयासिउ धणुगुणु तेणज्जुणु वि विसेसिउ । अवराइँ वि रहंगगयखग्ग' दावियाइँ छुरियाइँ समग्गइँ । घत्ता-चिंतिउ अज्जुणेण ए मझ वि अहिउ । धणुविन्नाणगुणु सविसेसु पयासिउ ॥३॥ . १० पेच्छह हा हउँ गुरुणा वंचिउ मेल्लिवि महुँ गुरु अन्नु न अहियउ दिन्नउ वरु गरुयाहँ वि जहिँ वरु एम भणेवि गंपि गुरु गरहिउ खीरकयंबउ नामें वणयरु भणइ दोणु पइँ मेल्लिवि वल्लहु कहिँ अम्हइँ कहिँ पुत्त चिलायउ निच्छउ एउ असेसु असच्चउ एउ सुणेवि लेवि गुरु अज्जुणु ३. १. विदु सणेवि। मेच्छहो नियगुणु अहिउ पवंचिउ । होसइ तुह विनाणे सहियउ । अलिय होइ तहिँ कि कीरइ किर । पइँ धणुगुणु भिल्लाण वि न रहिउ । जाणइ मझ वि पासिउ धणु वरु । ५ न वि महुँ आसाथाणु वि दुल्लहु । कहिं धणुवेउ तेण विनायउ । जइ तो पहु दक्खालमि पच्चउ । गउ तहिँ जहिँ सो भिल्लु अणज्जणु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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