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________________ संधि २१ विज्जा वि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयादि होदि सफला य । कह पुणु निव्वुदिविज्जा सिज्झिहिदि अभत्तिवंतस्स ॥ [भ.पा. ७५२] एवं भरिणदो विज्जा वि विद्याशास्त्रमपि शास्त्रोपदेशो वा सिझदि समाप्ति समायाति सफला च फलदायिनी भवति । किं पुननिवृतिविद्या निर्वाणविद्या समाप्ति गमिष्यति प्रभत्तिमंतस्य भक्तिहीनस्येत्यर्थः । अत्राख्यानम् । धुवयं--प्रवरु वि भत्तिफलु भावेण सुणिज्जउ । __ अवणिय दुक्कियहः सलिलंजलि दिज्जउ ॥ आसि एत्थ पावियगुणगउरव पंडवरज्जि परिट्ठिय कउरव ।। जामच्छंति सव्व अविहत्तिए करिवरपुरि' अवरोप्परु मेत्तिए । ताम दोण नामेण पहाणउ बंभणु धणुविन्नाण वियाणउ। १० एक्कहिँ वासरि तहिँ संपत्तउ किवण वियाणिऊण गुणवतउ। दाविउ नेप्पिणु संतणुतणयहाँ कयदिढबंभचेरवयपणयहो । तेण वि तास समप्पिय नंदण सो वि गुणावइ नयणानंदण । हुउ विक्खायउ पत्तमहत्तणु अह को गुणहिँ न पावइ कित्तणु । पच्छिमनयरासन्न रन्न अत्थि भिल्लु नाणातरुछन्न। १५ घत्ता--भीमु पयंडबलु गवलंजरणबिंबउ । अत्थि चिलायवइ तहिँ खीरकलंबउ ॥१॥ लेप्पपिंडमउ दोणु करेप्पिणु पुच्छइ कहि गुरु केम रइज्जइ सयमेवक्खइ एण विहाणे कालें भत्तिभरें संजुत्तउ सद्दवेहु दुल्लक्खु वि जाणिउ १. १० पुरु। पुज्जइ सो तिकाल पणवेप्पिणु । ठाणु बाणसंधाणु वि किज्जइ । मुच्चइ बाणु रइयसंधाणे । धणुविन्नाणहो पारु पहुत्तउ । राहाचंदवेहु परियाणिउ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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