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________________ २२८] सुणेवि महप्पुववासहो ताहिँ मुणीसर पंचमियाहि विहाणु दुभेय समाहिसिरीपय पुव्वु समाहि कारण हिइ पक्खे दसायण दोह मि पंच जि मास महाश्रहिसेउ जिणाहिवपुज्ज पहावण जायरणेण समाण मुदि पोत्थय पोत्थय वत्थ सिरिचंदविरइयउ [ पुणो विपत्तुवसंतमणाहिँ । कह पयासइ संघपहाणु । as वियाह पंचमि पव्वु । विदीय लइज्जइ सुक्किलपक्खे | जिहुत्तविहीन करेवि उवास । जिणाला घंटउ सोह मणोज्ज । ससत्ति संघहो दाणु समाण । तहज्जहुँ दिज्जहिँ वत्थ पसत्थ । धत्ता- एम करेप्पिणु उज्जमणु फलु पाविज्जइ ताहे पहावें । लद्धसमाहि जीउ कर्मण वच्चइ सासयपुरहो सहावें ॥२०॥ २१ निसुणेपिणु एउ किसोयरिउ पंचमिववासु लेवि गयउ सोहम्मसग्र्ग सोहाजुयउ जीवेवि पंच पलिदोवमइं तत्तो चइऊण चत्तदुहउ रोहिणिउवरम्मि महाइयउ श्रयणवि उ विमुक्करउ एत्थंतरि नविवि वसुंधरिया कहि र सामिय मोणफलु भणिदं च गमे एक्कम्मि भवग्गहणे समाहिमरणेण जो मदो जीवो । नहु सो हिंडदि बहुसो सत्तट्ठभवे पमोत्तूणं ॥ गाहा— होगण चक्कवट्टी कल्लाणपरंपरं च लद्धूण । सिरिपंचमिफलमेयं अप्पा अजरामरो होइ ॥ Jain Education International धत्ता — कयमोणव्वउ सग्गि सुरु होइवि चक्कवट्टि उप्पज्जइ । जीव मोफलेण पुणु सिद्धिवहूवरत्तु संपज्जइ ॥२१॥ २०.२०. १४ पणवेपणु साहु रुहोरिउ । तहिँ दियहे चेव वज्जें हयउ । सुरसुंदरियउ चारिवि हुयउ । माणेपिणु सुहइँ णोवमई । तुह जायउ एयउ तणुरुहउ । हईस वसुंधराइयउ । हुउ सयलु लोउ जिणधम्मरउ । पुच्छइ गुणसासवसुंधरिया । यहि भइ विमुक्कमलु । २२ गाहा— तिहुयणपच्चयकरणं श्रमयं व अईवमिट्ठयं वयणं । सव्वपमाणीभूदं प्रणोवमं होइ मोणेण ॥ For Private & Personal Use Only १५ २० ५ १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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