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कहकोसु
२०. २३. १५ ],
[ २२६ अणिवारियाणापसरु जए
पाराहहिं गरुय वि तासु पए। रिद्धीय समाणु पुरंदरहो
रूवें सोहग्गेण वि सरहो। माणुन्नई मंदरसरिसु
उवमाण न कोइ तासु पुरिसु । तो वयणु वि अमिनोसहहँ पए
संभवइ विसमावसवाहिखए। फुल्लियनवनलिणगंधबहलु
महुरक्खरजंपिरु मुहकमलु । बलु पोरिसु कुलु जसु कित्ति जउ
तहो होइ जेण किउ मोणवउ । सव्वत्थ वि थोत्तसएहिँ सया
थुव्वंति नरा कयमोणवया । दुहसज्झउ विज्जाजोइणिउं
मोणेण होंति फलदाइणिउ ।। देवहँ वि पुज्ज वंदणकरणु
किज्जइ मोणेण जि मलहरणु । मोणेण महत्तणु संभवइ
कयमोणहो कलहु वि उवसमइ । झाणु वि कम्मक्खयकरणखमु
किज्जइ मोणेण जि मोक्खगमु । घत्ता-अहवा किं बहुजंपिप्रण अत्थि समाहिनियमु जं कि पि वि ।
तं सयलु वि मोणव्वाण सिज्झइ सहलु होइ इयरं पि वि ॥२२॥ १५
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गाहा–काऊणं उज्जमणं सावहि मोणं धरिज्जदे पुज्जा।
जिणवड्ढमाणपडिमा पइट्टइत्ता पयत्तेणं ॥ निरवहिहे अणंतसोक्खकरणु
उज्जमणं सन्नासें सरणु । परदोसावाउ जसुज्जलउ
सो सव्वहँ मोणहँ अग्गलउ । किं मोणं परदोसग्गहणु
परिभमइ चउग्गइ भवगहणु। इय जाणिवि परदोसग्गहणु
वज्जिज्जइ किज्जइ अमलमणु । प्रायण्णिवि एउ वसुंधरिए
दिढु लइउ मोणु गुणगोयरिए । निसुणेवि एउ हरिसहो भरिउ
सुरहियवयनियमालंकरिउ । पहु पुत्तकलत्तहिँ परियरिउ
पणवेवि साहु पुरि पइसरिउ । एक्कहिँ दिणि दप्पिणि पलिउ सिरे आलोवि मणिमयमउडधरे। तक्खणि वेरग्गहो राउ गो
हा सयलु वि तिट्ठ लोउ हो । न वियाणइ विसयासत्तमणु
मन्नइ महु पुत्तु कलत्तु धणु । न मुणइ न को वि कासु वि सरणु न निहालइ आसन्नउ मरणु । घत्ता-वणवालें एत्तूण पहु एत्थंतरि नवेवि विनवियउ ।
देव अज्जु उज्जाणवणे आउ देउ जो सक्के एहवियउ ॥२३।।
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२३. १ देव प्रउज्जा ।
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