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________________ २०४ ] सिरिचंदविरइयउ [ १८.९. ४सूरें तमभडु दूरोसारिउ उट्ठिवि राएँ जिणु जयकारिउ । जयमंगलरवेण तहिँ गंपिणु अट्ठपयार पुज्ज विरएप्पिणु । दिन्नु घाउ सव्वण्हु सरेप्पिणु कड्ढिय जिणतणु रप्फु खणेप्पिणु । नरवइ सव्वु को वि परिप्रोसिउ देवहिँ साहुकारु नहि घोसिउ । पूर पइज्ज नरिंदो केरी प्राणिय लयणहो पडिम भडारी । पुज्जिय पहुणा कयनवयारे किउ पारणउ समउँ परिवारें। घत्ता-मंगलु गाइज्जइ दुंदुहि वज्जइ जिणमहिमुच्छउ नवनवउ। १० किज्जइ वित्थारे एण पयार थिउ तेत्थु जि चिरु लद्धजउ ।।९।। १० राएँ धम्माणंदियचित्तें एक्कहिँ दिणि पाडिमाउ नियंतें । मूलपडिमसीहासणरोहण पाहणगंठि निएवि असोहण । पुच्छिउ वाहरेवि सिलकुट्टउ टुंटु एहु किं दीस मोट्टउ । भणिउ तेण सुणि सिरिकुलमंदिर अच्छइ एत्थ पउरपाणियसिर । वज्जिउ तेण देव रूवारें नावणीउ टंकियहि पहारें। नं सहसत्ति असद्दहमाणे फोडावियउ अणायपमाणे । नट्ठउ लयणु जलोहें पूरिउ बहु वसुहाणाहेण विसूरिउ । हा हा हउँ पाविठ्ठ अउन्नउ नासिउ जिणहरु जेण रवन्नउ । घत्ता-नेमित्तियवयणे पाहणचयणे बंधाविउ पहुणा वरणु । जलु जेम न निग्गइ लोया लग्गइ वाहि दुहिक्ख होइ मरणु ॥१०॥ १० करइ पलउ जो जिणवरभवणही एउ भणंतु निच्चदूमियमइ एप्पिणु पुणु नाएण णिरोहिउ एत्तिउ कालु एउ मइँ रक्खिउ अग्गा दूसमकालपहावें घरि घरि तक्कर दुक्किय दुज्जण तेण समत्थु वि हउँ मणिघडियो अवरु वि एयहो उप्परि एरिसु । एहु जि पायच्छित्तु निरुत्तउ एम भणेवि सेहु गउ भवणही ११. १ दुक्खिय । २ म छत्ति । तहो कहिँ सुद्धि धम्मविद्दवणहो । अच्छइ असइ न केवइँ भूवइ । सोउ करंतु सामि संबोहिउ । संपइ कज्जवसेण उवेक्खिउ। होएवउ लोएण सपावें । होसहिँ फुडु विरला सुहि सज्जण । थिउ उप्पेक्ख करेप्पिणु पडिमरे । कारावहि जिणहरु विढवहि जसु । उठू राय मच्छहि अवचित्तउ । उइउ बिंबु गयणंगणे तवणहो। १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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