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________________ ११. ६.३ ] , कहकोसु [ २०॥ एम भणेवि देउ गउ सग्गहो करिवरो वि परमहा वेरग्गरे । न वि कासु वि सो रूसइ रज्जइ पुव्वकमेण जिणेसरु पुज्जइ । पासुयसलिलाहारु पउंजइ धम्मझाणि मणु धीरु निउंजइ। जंतु संतु पहि जंतु नियच्छइ एण विहाणे सो एत्थच्छइ । पुणरवि आहासइ नायामरु प्रायण्णहि अवरु वि निव वइयरु। ५ वेयड्ढहो सोहाहयसुरउरि दाहिणसेढिहि रहनेउरउरि । नीलमहानीलक्ख इहाइय होता खग निव वेन्नि वि भाइय । दाइएहिँ ते समरि परज्जिय जाया विज्जाविहवविवज्जिय । चिरकयदुक्कियकम्में पेल्लिय निययनिवासो देसहो घल्लिय । घत्ता--मुणि नाणदिवायरु नामें सायरु पुच्छिउ तेहिँ पणट्ठमलु । पुणु मयणवियारा अम्ह भडारा होसइ कइयहुँ विज्जबलु ॥७॥ कहइ साहु दक्खिणदेसंतरि अहिरविसण धणधन्ननिरंतरि । तेराउरि निवसंत सहरिसहिँ बोलीणेहिँ दुवालसवरिसहिँ । धारासिवपल्लि हे आसन्नउ सहसथंभु जिणभवणु रवन्नउ । गिरियडि कारावेवि पइट्रिवि उच्छउ अट्ठाहियहे अणुट्ठिवि । अठ्ठववासें मंताराहण होसइ तुम्ह समीहियसाहण । एउ सुणेवि नवेप्पिणु मुणिवरु एत्थागय ते तेरापुरवरु ।। साहेवि सव्व देस देसाहिव थिय सुहुँ रज्जु करंत महानिव । एहु जिणालउ तेहिँ कराविउ . पुणरवि विज्जाहरपउ पाविउ । एव सव्वु वित्तंतु पयासिउ नाएँ रायही मणु परिप्रोसिउ । पुणु वि भणिउ निव' तुहुँ पुण्णाहिउ पुव्वजम्मि पई जिणु पाराहिउ। १० घत्ता-चितिउ पाविज्जइ परबलु भज्जइ तासु सुरा वि हु दिति वरु । निम्मलु जसकित्तणु होइ पहुत्तणु महिउ जेण जिणदेउ वरु ॥८॥ निच्छउ तुह पुण्णेहिँ चलेसइ इय भणेवि गउ अहि आवासो कुसुमसमूहु व गयणपलासही पडिम पमाणु एह जाएसइ । एत्तहिँ उइउ बिंबु दिवसेसहो । नं चिंतातरुफलु पुहईसहो । प. १ नवि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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