SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ ] सिरिचंदविरहयउ [ १८. ४.१३घत्ता-परियचिवि अच्चिवि सुक्किउ संचिवि सज्जण धम्मविणोयपिय । गुणपावस' रंजियमाणस जिणपडिमाउ नियंत थिय ॥४॥ सुंदरयरु तोडियपसुपासही तहिँ पडिबिंबु नियच्छिवि पासो । पडिछंदेण एण नियपुरवरि अवर वि पडिम करावमि जिणहरि । एम भणेवि लेवि परिप्रोसें आइउ अमियवेउ अायासें। एत्थ थवेवि देउ वंदेप्पिणु जामुच्चाइय पडिम निएप्पिणु । ता तिलमेत्तु वि वलइ न थाणहो जाय महंत चित नहजाणहो । ५ तत्थेव य छुहेवि मंजूसहे विज्जारइयहे रयणविहूसहे । गउ खेयरु तुरंतु तेरापुरु दिट्ठउ सहसकूडि जसहरु गुरु । वंदिवि पुच्छिउ पडिमहे वइवरु अक्खइ अवहिनाणि संयमधरु । निच्छउ एत्थ पएसि विसालउ होसइ खेयर चारु जिणालउ । पइँ संबोहिउ धम्मु लएसइ परभवे सा सुवेउ पुज्जेसइ । निच्चल होवि तेण थिय सुंदर जिणपडिमा पयपणयपुरंदर । घत्ता-निग्गंथ हवेप्पिणु एउ सुणेप्पिणु एत्थु जि निव्वेएँ लइय । पणवेवि तमोहरु साहु जसोहरु वे वि सहोयर पव्वइय ॥५॥ ५ तत्थ सुवेउ परीसहभग्गउ मुउ मिच्छत्ते इह हूयउ गउ । सेयसरीरु गिरि व गरुयारउ जूहवई मयंधु परमारउ । इयरु वि कालें कालु करेप्पिणु आराहण भयवइ भावेप्पिणु। हुउ कप्पुब्भवु देउ महाइउ मुणिवि भाइ संबोहहुँ पाइउ । कयचिररिसिरूवें संभाविउ लेप्पिणु पुव्वनामु बोल्लाविउ । सयलु वि चिरवइयरु जाणाविउ हुउ जाईसरु पच्छाताविउ । हा पाविलें कि पि न भाविउ मइँ' अप्पाणउ सइं संताविउ । उवसंतेण तेण पडिवन्नउ | इसिणा सावयधम्मु विइन्नउ । पुव्वपडिमपरिणामु वियाणिवि उवएसियवयणहिँ सम्माणिवि । पुज्जेज्जसु पणवेज्जसु भावें जेण सहोयर मुच्चह पावें । घत्ता-इह को वि मुणेसइ एह लएसइ जइयहुँ उक्खणेवि पडिम। सन्नासु करेज्जसु सव्वुवएज्जसु तइयहुँ तुहुँ गयगुरुगहिम ॥६॥ ४. १ पाडल। ६.१ समद। १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy