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________________ कहकोसु १६. २८. १२. ] [ १८७ सव्वहिँ वि धरंतहँ पवणजउ चप्पेवि बलेण नीसरिउ गउ । तुहवयणे पच्छातावपरु कहमवि उत्तरिउ धरेवि तरु । गउ निययनिवासहीं पुरिसहरि एत्तहे एत्थायउ तुरिउ करी। १० घत्ता-समभरियउ पर पइसरियउ तुहुँ तरेवि निग्गय सरु । ण्हाएप्पिणु सलिलु पिएप्पिणु गउ गइंदु गहणंतरु ॥२७॥ २८ तहिँ विहिवसेण वेल्लहलभुए तुहुँ मालिएण दिट्ठा सि सुए। दठूण सिणेहभावभरहो गउ बहिणि भणेवि लेवि घरहो । तहिँ कुसुमदत्तघरे जेम थिय चत्तारि वि मास सुहेण निय। एक्कहिँ दिणम्मि ईसावसए रूसेप्पिणु संजोइयमिसए। गण गामहो पिण मालिणि तुहुँ धाडिय गय पियवणु जणियदुहुँ । ५ तहिं पंसविय सुउ संजाउ वरु मायंगवेसु आइउ खयरु । कहिऊण सवइयरु सयलु तउ मग्गेप्पिणु नंदणु लेवि गउ । जं जायमेत्त छित्ता सि जले जं करिणा णिय हरिऊण हले। जं मालायारिणीय पहया घल्लिय घराउ पिउवणहो गया। तं फलु तिवारवयभंजणहो निसुणेप्पिणु एउ निरंजणहो। १० धत्ता–पणमेप्पिणु मणु नियमेप्पिणु मुणिपयमूले महाफलु । संगहियउ तउ जयमहियउ ताण सिरीचंदुज्जलु ॥२८॥ विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भवरणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ।। इय करकंडचरित्ते सिरिचंदमुणिंदविरइए रम्मे । सोलहमो प्रासासो करकंडप्पत्तिणामोयं ॥ ॥ संधि १६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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