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________________ १६. २५. ३. ], कहकोसु [ १८५ n - वणिबंभणु कविलु वि कालगउ काणणि दंतिउरहो जाउ गउ । पणियपडिवक्खपक्खपलउ नामें पसिद्ध रेवातिलउ । वणि धरिउ धाडिवाहणनिवहो हुउ करिवरु सो कयपयसिवहो । भवगहणि भमेवि असोक्खयरे अहिदत्त वि तामलित्तनयरे ।। वणिउत्तहो वसुदत्तहो तणिया हुय नागदत्त नामें वणिया। धणवइ घणसिरि नामालियउ जणियाउ ताण वे बालियउ । धणवइ धणपालो धणपयरे दिन्नी सुय नायलंदनयरे। तहो संसग्गेण अकज्जरया हुय सा अणमन्निय बुद्धमया। धणसिरि कोसंबिहे सुंदरहो दिन्नी वसुमित्तहाँ वणिवरहो । दिढदसण संसयभावच्या सा साविय तहो संगेण हुया। घत्ता-कालें मुश पिश विहवि गण नायदत्त दुक्खिय घरु । ससिमुहियह लहुदुहियह प्रागय कोसंबीपुरु ।।२३।। १० २४ धणसिरिए विवेयगुणायरए सम्माणिवि मायरि सायरए । मुणिवरहँ पासि दुहविद्दवणु लेवाविय निसिभोयणहो खणु । अच्छेवि तत्थ जेट्ठहे सुयहे गय नायलंदपुरु पासु तहे । तहिँ ताण निवारयकुगइभउ भग्गउ निसिभोयणविरइ वउ । इय इंति, जंतिएँ जं णियरउ मूढ वयभंगु तिवार कउ । पुणरवि परिगहियाणथमिया धणसिरिसामीवर एवि मया । तत्थु जि पुरम्मि पुहईवइहे वसुपालो देविहे वसुमइहे ।। जइयहुँ पहूइ सा उयरि हुया तइयहुँ पहूइ सोक्खेण चुया । जरसासखासकंडूहिं हया जीवियसंदेहहां देवि गया। घत्ता-नाणाविहदुहवंकावियमुह सा हयदेहबलासय । नवमासहिँ कह व किलेसहिँ वाहि व गब्भहो निग्गय ॥२४॥ २५ उयरत्थिया वि जा दुहु जणइ किं किज्जइ जइ सुवन्नछुरिया किं पुत्तिण दुक्खविदाइणिए सा वड्ढंती किं नउ कुणइ । तो कि हम्मइ तणु सुहयरिया। कि मायण पावइसाइणिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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