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१६. ६. ३. ] '
कहिँ ग्रह सामि एह कहि मेल्लेप्पणु सायरु सिरिसयणु हे वित्तंतु विक्खहे
५.
विभियचित्तें
तापसेप्पि
कच्छवणी रहो रत्ति करेप्पि
जिह न मुणइ जणु
पिय मिलेप जा जयमि किर
नाह वियक्खण
घत्ता - गउ गंगहं विभलतरंग एक्कहिँ दिणि संज्झासमए । मणिभूयि मइँ मंजूसिय दिट्ठ वहंती एंतियए ॥४॥
अक्खरललियउ
मणिकिरणज्जलु
लोएप्पिणु चितिउ अन्नहो
नउ एसा सुय जयविक्खाय हो केण वि कज्जें
एत्थु छुहावि एउ वियप्पिवि
माँ वढावय
जयहुँ पहूइ एसा सुयणु जं चितमि तं तं संपडइ निसुणेवि एउ मंजूस तउ
१ जलजि पहाविय ।
कहको
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कहिँ पुणविवज्जि लच्छि कहिं । कि तल्ले कयावि होइ रयणु ।
प्रायण्णह देव सलक्खणहे ।
सलिलु छिवंते । तुरिउ तरेष्पिणु । प्राणिय तीरहो ।
हु
गंपिणु सभवणु । उघाडेपणु । ताम मणोहर
बाल सलक्खण ।
रयणंगुलियउ । कोमलकंबलु । सिरु विपि ।
मइँ सामन्नह ।
बहुलक्खणय |
कवि हो । पालियरज्जें ।
विहाविय' ।
घत्ता - पुण्णममुहि पोममहादहि पत्त जेण पहयावइ । कलसद्दिय नामें सद्दिय तेण एह पोमावइ ||५||
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पिय समपिवि । पाव |
तइयहुँ पहूइ महु धन्नु धणु । हे गुण व घडइ । प्राणाविय राएँ कोड़ कउ ।
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