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________________ १७८ ] सिरिचंदविरइयउ उग्धाडिवि जोयइ कंबलउ । दिट्ठउ अनामु अंगुत्थलउ । ५ आलोइउ अवरु पत्तु लिहिउ उब्भासिउ तेण सव्वु कहिउ । कोसंबीपुरि वसुमइहे हुया वसुपालनरिंदहो एह सुया । जं दिवसही लग्गेवि गर्भ थिया तद्दिवसावहि नरनाहपिया। बहुवाहिहिँ वाहिय वियल किया न पयट्टइ एक्कु वि कावि किया। तें जायमेत्त निवमन्नियए बुहिऊण एत्थ निम्विन्नियए। १० घल्लविय सलिलि सल्लक्खणिया नउ कुच्छिय कुल निल्लक्खणिया। घत्ता-लेहत्थें एण पसत्थें निरु नरवइ आणंदिउ । सोहणदिणि पवरुच्छवघणि सइँ तह चंदणु वंदिउ ।।६।। ५. महएवि भणेवि परिछविया सा सीसहिँ सव्वेहिँ वि नविया । सहुँ सइग्र सक्कु नं सुरपुरहो अन्नहिँ दिणि गउ चंपापुरहो । विविहुच्छवेहिँ पहु पइसरिउ जणु जोयहुँ नववहु नीसरिउ । जंपति के वि सकियत्थु पहू जे पत्ताणोवम एह वहू। दुक्करु रई वि एरिस हवई सिट्ठारहो का वि अउव्व गई। मणसा वि न चिंतहुँ जा तरई सा केम विणिम्मिय हंसगई। क वि भणइ एह धण पुण्णवई परिपाविउ एरिसु जाइँ पई। . न मुणहुँ किउ आयण कवणु तउ' जेणेरिसु निरवमु लद्ध वउ । एवंविहाइँ वयणइँ जणहो निसुणंतु राउ गउ सभवणहो । घत्ता-सहुँ कंता अहिणवकंतण एक्कहिँ पट्टि निविट्ठउ । सुहिसयणहिँ वियसियवयणहिँ मंगलसेसहिँ ट्ठिउ ।।७।। एत्थंतरि परमाणंदभरे पेच्छह जा रच्छारमियसुरे सा अग्गमहिसि अंतेउरहो वइसरिउ चउक्कि ताण सहिउ प्रायण्णिवि एउ विचितियउ वलि किज्जउ माणविवज्जियहो संजाय वत्त महएविघरे । मालियसुय परिणिय कुसुमपुरे । किय राएँ मणिमयनेउरहो । सव्वेण जणेण एउ महिउ । महएविण चित्तु नियत्तियउ । जीविउ पडिवक्खपरज्जियहो । ७. १ तणउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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