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________________ १७० ] सलु लोउ सलु वि पासंडिउ एक्क मुवि साहु निग्गथा उ सुप्पिणु पुणु पुच्छेसइ ता उव्व का वि गइ नरवर गंभीरत्तणेण रयणायर सच्चसउच्चाचारपरायण सव्वसत्तसुहयारि' पसिद्धा सुरनरपुज्जणिज्ज तिहुयणगुरु निच्चनिरंजणम्मि अणुराइय सीलसहाय खंतिरहे थाइवि निम्मलकित्तिवडायालंकिय मेल्लिवि देवदेउ सामन्नहो जे निच्छय निष्पिह पहयत्तिय किं बहुणा जइ ते परमेसर तो हुंकारमेत्तवावारें इय वयणावसार्ण सकसाएँ कहसु सुमइ साहारियकाएँ मंति भणेसइ भिक्खाहारें तं गेहु प्रसन्नविणासें ५. सायरदत्तु नाम पालियवउ तो घरि रिसि चरियहे पइसेसइ घत्ता — तम्मि कालि एक्को च्चिय सायरचंदु पसिद्धउ नामें सिरिचंद विरइयउ घत्ता -- दिदु दंसणु बाणासणु लेप्पिणु झाणसर । जेहिँ कसाय परीसह किय रिउ निप्पसर ||५|| १ सव्व सत्थमुहयारि । Jain Education International ७ केर कराविउ पइँ बहुदंडिउ । अवर सव्व तुह नामियमत्था । केरिस ते पुणु मंति कहेसइ । जे धीरतणेण सुरगिरिवर । जे नाणंधारदिवायर । नहनिम्मलमण गुणगणभायण । न का वि पवणवपडिबद्धा । जे जा सहिँ मोक्खमहापुरु । सूरवीर महसत्त महाइय । संजमकवएँ तणु पच्छाप्रवि । [ १५.५.३ Sataracefर निस्संकिय । जे मसावि नमति न अन्नहो । ते तुह केम हुंति वसवत्तिय । कति नरेसर । म वि को तेलुक्कु वि हंति अवियारें । पुणरवि सो पुच्छेवर राएँ । निव्वहंति ते केण उवाएँ । सुविण दुक्कियभारें । संपेसेवउ पुरिसु हयासें । होसइ एत्थ जइ । चारुमइ ||६|| एक्को चेय हवेसइ सावउ । गंपि भाउ सो नरु मग्गेसइ । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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