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________________ १५. ५. २ ]' कहकोसु [ १६६ निग्गुणु निठुरु' परसंताविरु वंचणसीलु असच्चपलाविरु । माणुत्ताणउ रोसपरव्वसु परदारारउ ईहियपरवसु । मज्जमंसपिउ पावासत्तउ कुगुरुकुदेवकुधम्महँ भत्तउ । सव्वु वि परपरिवाउनिलीणउ विरलउ होसइ को वि कुलीणउ । जलयावलि पविरलु वरिसेसइ मेइणि किंचि किंचि फलु देसइ । ५ रोउ रउदु दुहिक्खु हवेसइ सयलु वि जणु जणेण खज्जेसइ । पुत्त पियर घराउ घल्लेसहिँ देवभोय पुहईस लएसहिँ । तवसि वि माढावन्नु करेसहिँ निय छक्कम्मइँ दूरे चएसहिँ। विप्प वि किसिकम्मा लग्गेसहिँ घत्ता-करभरु पउरु करेवउ सुद्दहिँ राणएहिँ । होएवउ चंडालहिं आयमजाणएहिँ ॥३॥ खिसत्तणु काही कुलउत्तिय होसइ चल परपुरिसासत्तिय । नउ मन्नेवउ गुरुहुँ गुरुत्तणु छड्डवउ सीसहिँ सीसत्तणु । नउ निव्वाहेसहि पडिवन्नउ मित्तहिँ काहीसहि पेसुन्नउ । भरियउ अइभरियउ जि भरेवउ निद्धणु सयलु वि परिहरएवउ । छत्तइँ ऊसरत्तु जाएसहिँ धन्नइँ अवदायइँ नासेसहिँ। ५ गामहणइँ पिंपिलसंकिण्णइँ रण्णइँ बब्बुलचोरहिँ छन्नई। पयहिय पयणियजणसंतावें पुहईसर कलिकालपहावें । अक्खमि केत्तियाइँ बहरूवइँ अवरइँ होसहिँ जाइँ विरूव । आयण्णहि भो आगामिय जिण चउयालीस मास पणरह दिण । एत्तियमेत्ते तम्मि अछंतण जणवइ दुक्कियकरणि पवत्तए। १० घत्ता–कोसलपुरि दुईसणु सयलधराहिवइ । __ सव्वह पच्छिमु कक्की' होसइ इह निवइ ॥४॥ एक्कहिँ दिणि सहाण अच्छंतउ किं महु कोइ वि अत्थि प्रसिद्धउ पुच्छेसइ सो निययमहंतउ । तामासेसइ बुद्धिसमिद्धउ । ३. १ निट्ठउ । ४. १ खसत्तणु। २ कक्कीस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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