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संधि १५
एउ सुणेप्पिणु पुणरवि सेणिउ विन्नवइ ।
कहि कालक्कम केरिसु होसइ साहुवइ ॥ धुवयं ॥ कहि केत्तिय अच्छइ अवसप्पिणि
कइयहुँ होसइ सा उच्छप्पिणि । केरिसु ताहँ सहाउ वि होसइ
एउ सुणेवि महामुणि घोसइ। भो मगहामंडलवइ सुहमइ
आयण्णेहि कालकमपरिणइ । ५ पइँ परोक्खि हुयश तिहिँ वरिसहिँ
अट्ठहिँ मासहिँ पणदह दिवसहिँ । गयहिँ चउत्थर कालि पवित्तण
आसाढहीं पुण्णिमण समत्त । सावणपडिवयदिणि पइसेसइ
पंचमु कालु रउर्दु हवेसइ । वीसुत्तर वरिसहँ सउ सुंदर
परमें मणुयाणं सत्त जि कर । तहो पवेसि सव्वण्हुपउत्तउ
आउसरीरपमाणु निरुत्तउ । तम्मि पहीयमाणि पाडलिपुरि
वरिसि सहासि गयम्मि मणोहरि ।। घत्ता-नामें दुम्मुहु दुम्मुहु कक्की भूमिवइ ।
होसइ रिसिभिक्खद्धं लेसइ दुट्ठमइ ॥१॥
५
साहु वि उपन्नावहिनाणउ
परियाणेप्पिणु कक्की राणउ । सव्वाहारहो चाउ करेप्पिणु
जाएसइ सुरलोउ मरेप्पिणु । भिक्खागहणणंतर कक्की
मारेवउ वज्जेण सुवक्की। पावें नरयालण पइसेसइ
अनयाचारहो संति न दीसइ । चोज्जु निएप्पिणु तहिँ बिभियमणु दुम्मुहरायसु प्राइउ बहु जणु । करिवि नियत्तणु दुक्कियकम्मो
लग्गेसइ दिदु जिणवरधम्महो। वरिसहँ सहसि सहसि एक्कक्कउ
होसी कक्की निवु नयमुक्कउ । ताम जाम विसए एक्काहिय
सयल वि एम मरेसहिँ साहिय । घत्ता--कहइ महामुणि रायो समयसहावु पुणु ।
दुक्खिउ दीणु दरिद्दिउ होसइ सव्वजणु ॥२॥
१.
१ सुंदरु ।
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