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१४. ६.८ ] " कहको
[ १६३ जं सक्कइ तं जइ करइ कोइ
तो तासु धम्मु किं किं पि होइ । मुणि भणइ होइ नंदण निरुत्तु
छुडु देवगुरुप्परि अचलचित्तु । तो जं सक्कइ तं करइ चारु
सद्दहइ इयरु वयसीलभारु । परमत्थें एण कमेण जीउ
पावइ परसुहफलु पुण्णबीउ । १० घत्ता-सुणिबि एउ भिल्लेण मुणिहं परज्जियमारहो ।
लइय नवेवि निवित्ति वायसमांसाहारहो ॥७॥
गउ साहु कहिमि सव्वोवयारु
निवपल्लिनिवासही खइरसारु । कालेणासोसियदेहसाहि
जायउ गिंभु व दुहदाइ वाहि । प्रोसहविहाण किउ निरवसेसु
पर कि पि नेव जायउ विसेसु। बलिपलभोयणु वज्जरइ विज्जु
तं मणइ मणावि न कयपइज्जु । तो सालउ' सुहिसुहसज्जणेहिँ
कोक्किउ पियाण सुहिसज्जणेहिँ। ५ ता सूरवीरनामेण तेण
सारसपुराउ आवंतएण। निब्भयमण नयणंसुय मुयंति
पालोइय वरकामिणि रुयंति । मुक्कालय हा हा पिय भणंति
पुच्छिय किं रोवहि हरह भंति । सो भणिउ ताइँ यइट्ठसोक्खु
रोविज्जइ अप्पप्पणउ दुक्खु । जज्जाहि वप्प तुहुँ चलिउ जत्थ
किं कहिया अम्ह कहाण एत्थ। १० पुणु भणिउ तेण रक्खहि म गुज्झु
कहि का तुहुँ कि मणि दुक्खु तुज्झु । सा भणइ वीर निस्संकचित्त
अक्खिज्जइ जइ जायइ परित्त । घत्ता-ता भणिय सूरवीरेण मा भी रुयहि ससुंदरि ।
जं मइँ सिज्झइ कज्जु तं कहि करमि किसोयरि ॥८॥
भणियं ससिवयण विसालनेत्त दिढमणु सुयमुणिवरवयणसारु सो कायमांसवज्जणफलेण सव्वहिँ सुरगइहिँ विणासहेउ भज्जइ पइज्ज तहो तणिय जेण तें रुयमि भाउ नउ अन्नु मोसु सुंदरि पइज्ज दिढवयहो जासु गउ एम भणेवि तुरंतु तेत्थु ८. १ सोलउ।
वडजक्खिणि हउँ वणि एत्थु मित्त । जो तुह बहिणीवइ खइरसारु । होसइ महु पिउ पुण्णहो बलेण । वुत्तउ पर खाइ न कयविवेउ । तें तुहुँ तहिँ आहूयउ जणेण । निसुणेवि भणइ संजायतोसु । को करइ सयाणउ भंगु तासु । बहिणीवइ मरणावत्थु जेत्थु ।
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