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सिरिचंदविरइयउ
[ १४. ५. १
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भणइ राउ पयपणयगत्तो
कहसु काइँ हउँ सामि होतो । किं कयं वयं जयपहाणो
जेण एत्थ संजाउ राणयो। तं सुणेवि नवजलहरज्झुणी
कहइ मगहनाहो महामुणी। नियसिरग्गग्रोथंभियंबरो
अत्थि एत्थ धरणीयले धरो। पज्झरंतसरभरियकंदरो
विंझु नामु तरुनियरसुंदरो। दंतिदंतनिभिन्नदेहरो
कयरणो व्व सुहडो सलेहो। सुरसमूहसेवियतडावणी
गिरिपहाणु दिणयरसिहामणी । नरवइ व्व मायंगसारो
सिरिहरो व्व सारंगधारो। जिणहरो व्व हरिसेविप्रो सया
जासु भत्तिपर विविह सावया। घत्ता-तम्मि गिरिदि रउदु सीहु व पहयकरिदउ ।
खइरसारु नामेण अत्थि पयंडु पुलिंदउ ॥५॥
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पाणिवपवड्ढियदप्पकंडु
करकयपयंडकोयंडदंडु। झंपडवमालतरुसरिससीसु
भारत्तनेत्तु भूभंगभीसु । दीहरउदंतुरविरलदंतु
गवलालिवण्णु नावइ कयंतु । एक्कहिँ दिणि तेण सकतएण
काणणि कीलाश भमंतएण। तरुमूलि निसन्नु तिगुत्तिगुत्तु
आलोइउ साहु समाहिगुत्तु । मुणि माहप्पेणुवसंतु जाउ
पाएसु पडिउ समहिलु चिलाउ । वइणा पवुत्तु कयावसुद्धि
संभवउ वच्छ तुह धम्मबुद्धि । तं वयणु सुणेप्पिणु वणयरेण
पुच्छिउ रिसि सिरि संगयकरेण । कहि सामिय वुच्चइ काइँ धम्म
अायण्णवि भासइ समियकम्मु । घत्ता-सो फुडु भण्णइ धम्मु जहिँ न जीउ मारिज्जइ ।। __ खज्जइ असुइ न मंसु जत्थ न सुर महु पिज्जइ ॥६॥
सो भण्णइ धम्मु असच्चचाउ
घिप्पइ परदव्वु न जणियाउ । मुच्चइ परयारु अणत्थमूलु
निसिभोयणु धम्मसिरम्मि सूलु। वज्जिज्जइ परपेसुन्नभाउ
परवंचणु दुग्गइगमउवाउ । जो करइ एउ संजणियसोक्खु
सो नियइ कयावि न कि पि दुक्खु। निसुणेवि एउ पुणरवि पुलिंदु
बोल्लइ पप्फुल्लमुहारविंदु। जं भासिउ तुम्हहिँ सोक्खहेउ ...... जो सव्वु न सक्कइ करहुँ एउ।
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