________________
१४. ४. १२ ] . कहकोसु
[ १६१ छव्वासय छल्लेस्सासहाव
छद्दव्व छरस अन्नन्नभाव । छज्जीव काल पोग्गल विसेस
मिच्छत्तनउहो छादण विसेस । ठाणइँ संघादणइंछ चेय
तच्चाइँ सत्त मय सत्तभेय । ५ धत्ता-सत्तपयारु सरीरु अट्ठ सिद्ध गुणगणिया ।
कम्मु वि अट्ठपयारु अट्ठा भय मय भणिया ॥२॥
नव बंभचेर नवविह पयत्थ
नवविह गह तह नव नय पयत्थ । उत्तमखमाइ दहभेउ धम्मु
दस पायच्छित्तइँ सवणधम्मुः। एयारह रुद्द रउद्दभाव
एयारह सावय पहयपाव । बहुसुयवित्थारेयारसंग
बारहविह तव कयकामभंग । बारह मुणिपडिमउ दुक्कराउ
अणुपेक्खउ कम्मखयंकराउ। चारित्तु सुगइगमणहो उवाउ
किरियाउ तहा तेरहविहाउ । रयणाइँ चउद्दह मग्गणाउ
चउदह नईउ दुत्तरवणाउ । चउदह आहरण' रज्जुयाउ
सोयारपिंडयडहिं जुयाउ । चउदह मल जीवसमासभेय
कुलयर वि चउद्दह मइसमेय । गुणठाण चउद्दह पुत्व वत्थु
अब्भतरु चउदहभेउ गंथु।। घत्ता-पनरह जोयपमाय कम्मावणिउ निरुत्त।
सोलह सग्ग कसाय तह भावणउ पवित्तउ ॥३॥
दससत्ता संजम दुरियठाय
अट्ठारस भासिय संपराय । नाहज्झयणइ एऊणवीस
असमाहीठाणइँ होंति वीस । सवलेक्कवीस परिसह दुवीस
तियअहियं ठाणविही वि वीस । तित्थइँ चउवीस सुहावणाउ
पणवीस महव्वयभावणाउ । छव्वीस पुहइभेयंतराहँ
गुण सत्ताबीस जईसराहँ। पायार कप्प पर अट्ठवीस
पावहाँ सुत्तइँ एऊणतीस । दुम्मोयमोहठाणाइँ तीस
कम्मो विवाय खलु एक्कतीस । बत्तीस महंत जिणोवएस
तेत्तीसच्चासणभेय दोस । जं सुहुमु थूलु जइ कि पि वत्थु
जं नत्थि हुयउ होसइ समत्थु । णाणासुहदुक्खनिरंतराइँ
सव्वाण कहाउ भवंतराइँ । धत्ता-पायण्णेप्पिणु सव्वु वढियपरमाणंदें ।
पुच्छिउ गोत्तमसामि निययभवाई नरिंदें ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org