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सिरिचंदविरइयउ घत्ता-गंपि पयासियनेह वाहिविलीणु सविणएँ।
दिठ्ठ सहोयरिकंतु विहसियमुहु कयपणएँ ।।९।।
१०
पुणु भणिउ भणइ जं किं पि वेज्जु तं किज्जइ चितिज्जइ सकज्जु । जें सुहि सुहु होइ सरीरु रम्म
जीवंतहँ होसइ धम्मकम्मु । लइ खज्जउ जंगलु वायसासु
पुणु तासु करेवउ दोसनासु । दिढमणु अवगणियवाहिवाहु
निसुणेवि एउ वज्जरइ वाहु । तें भणिउ जाइ जइ पलइ काउ
भंजमि वउ तोवि न खामि काउ। ५ निट्ठाहु निएप्पिणु सहरिसेण
भत्तारु पसंसिउ ससह तेण । पुणु जक्खिदेविवित्तंतु तासु
पायडिउ भावि सुरलोयवासु । प्रायण्णिवि परियाणियविसेसु
संतुट्ठ सुठ्ठ मणि वणयरेसु । कयसवजीवासही निवित्ति
एत्तहे हय कालें पाणसत्ति । घत्ता-मुउ निम्मोहु धरेवि गुरुगिर चित्तै चिलायउ। देउ दिवायरु नामु पढमसग्ग संजायउ ॥१०॥
११ कहिँ असुइ चिलायत्तणु अहम्म
कहिँ देवत्तणु सुइ परमरम्म। इय जाणिवि दूरि विमुक्ककम्मु
भणु केम न किज्जइ जइणधम्मु । एत्तहे काऊण परोक्खकज्जु
तहिँ थाण थवेप्पिणु भाइणेज्जु । पियसोयाय विच्छायकति
साहारिवि ससहोयरि रुयंति । एतेण तेण पुणु दिट्ठ देवि
बोल्लाविय जमला कर करेवि । ५ कि पालियवयसुक्कियसणाहु
हुउ महु बहिणीवइ तुझ नाहु । ता कहिउ रुयंतिण ताण तासु
किउ मइँ सयमेव सकज्जनासु । जं कहिउ भावि वरइत्तलाहु
हरिसिउ तुह वयणु सुणेवि वाहु। काऊण सव्वपलकवलचाउ
गुरुपय सुमरेवि महाणुभाउ । संपन्नुत्तमदेवत्तलाहु
महु पुणु वि तहट्ठिउ विरहडाहु । १० वयणेण एण जक्खिहे तणेण
जाएप्पिणु विभियमाणसेण । धत्ता-सावयधम्मु समाहिगुत्तमुणिहे पणवेप्पिणु ।
लइउ सूरवीरेण ससा निवित्ति करेप्पिणु ॥११॥
सुंदरु संजणियजणाणुराउ उवसेणिउ नामें गुणनिहाणु
इह रायगेहनयरम्मि राउ। होतउ विवक्खमाणावसाणु ।
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