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________________ १३. १८. १४ ] कहको [ १५९ अन्नोन्नचिरवइरु नउ को वि संभरइ अणवरउ परमाण मेत्तीय संचरइ । सव्वत्थ परिभमइ जहिँ जहिँ जि मणदिट्ठि तहिं तहँ जि खयरामरापणयपरमेट्ठि। सुनियत्थसुपसत्थनेवत्थवरकाय नियनिलउ नीसुन्नु काऊण नं प्राय । १० घत्ता-सिरिसरसइ मेल्लेप्पिणु सइ दूरोसारियभवरिणहो । को य क्कइ वण्णहुँ सक्कइ समवसरणसंपय जिणहो ॥१७॥ १८ उन्नइ घरतरुथंभहँ तणिया जिणतणुमाणे बारहगुणिया । पायार थूहमणि वेइयउ अट्ठउणउ नवर निवेइयउ । महि मेल्लिवि पंचसहासधणु जं थिउ गयणंगणि रम्मतणु । जहिँ जिणवयणामयलीणमणु बारहकोढेसु निविठ्ठ जणु । रिसि पढमि वीन कप्पामरिउ तइयम्मि को? संयमधरिउ । तुरियइ जोइसियहँ सुंदरिउ पंचमइ वियाणह वेंतरिउ । छ? भवणामरजुवइजणु सत्तम ताहँ भत्तारगणु। अट्ठमइ अट्ठविहसुरनिवहु नवमइ नक्खत्त थिया सपहु । दहमप्र कप्पामर पणयपरा एयारहमण नीसेस नरा । बारहमण हरि करि किडि ससया सिहि सप्प अवर तिरियंच सया। १० अणवरउ जत्थ संगीयसरु सयलु वि जणु जयजयकारपरु । सहुँ सेन्ने हरिसुद्ध सियतणु तहिँ राउ पइठ्ठ पहिट्ठमणु । घत्ता-पेच्छिवि सुहु जिणदेवहीं मुहु विहसिउ मगहाहिववयणु । सिरिचंदही जयणाणंदरे दंसणेण नं कुमुयवणु ॥१८।। विवहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुन्दरे दिन्नतोसे । मुणिसिरिचंदपउसे कहकोसे एत्थ सेणियक्खाणे । जिणसमवसरणरयणानिरूवणो एस तेरसज्झाउ। - ॥ संधि १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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