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१५८ ] सिरिचंदविरहयउ
। १३. १५. ५चउदिसु तहो उवरि निहाणधरा
थिय धम्मचक्ककर जक्खसुरा। " पवर?महाधयसोहधरु
तो उवरि सुवन्नवीढु अवरु । जें भीयरु मोहचक्कु पहउ
तहो रेहइ रयणरहंगधउ । जो दुद्दमु मणकरि वसि करइ
तो तंबेरमु धउ अणुसरइ । विसु धम्मु पयासिउ जेण जए
तहो नत्थि भंति विसु थाण धए । जसु सुहकम कमलनाहु नवइ
तो निच्छउ कमलकेउ हवइ। १० जो नीरंबरु अंबरु मुणइ
तहो अंबरचिंधउ को हणइ । जो निब्भउ सीहु व पहयमउ
तही अवसे सोहइ सीहधउ । जो विसयकसायसप्प दमइ
सो विणयासुयवडाय लहइ । घत्ता-मुक्काउहु भडकुसुमाउहु जासु मएण पणठ्ठ रणे ।
अनिवारिउ होइ निरारिउ कुसुममालधउ तासु जणे ॥१५॥
अवरु वि तासुवरि विचित्तयरु
छज्जइ पीढत्तउ चित्तयरु । जंबूनयमउ मणिविप्फुरिउ ।
पुणु भद्दासणु सीहहिँ धरिउ । तहिँ संठिउ सोहइ भुवणगुरु
तइलोयसिरम्मि व मोक्खपुरु । मरगयलट्ठीए महाइयए
कक्केयणपव्व विराइयए। छत्तत्तउ सहइ समुद्धरिउ
निरु निम्मलु नं नाहहो चरिउ । ५ रविकोडिसमप्पहु भावलउ
जणनयणहँ तइ वि हु सीयलउ ।' आरत्तपुप्फथवयंचियउ।
नं अमयरसोहें सिंचियउ । गयसोयहो पासे असोयतरु
नं दीसइ निग्गउ रायभरु । घत्ता-नं अक्खइ गुज्झु न रक्खइ दुंदुहिगुरुसरेण जणहो ।
मा मुज्झह सहिउ विउज्झह गलइ पावु पणवहीं जिणहो ।।१६।। १०
वरपरिमलामोयवासियदियंता नं देव अच्चासणाभग्रण रिक्खाई चउसट्ठि जक्खामरा चमर चालंति णं केवलन्नाणजरपुरिसकेसोहु गंभीर सुपसन्न सयलत्थ मयखाणि बहुरस [विडविया-] हं धार व्व जलयस्स जं जं जए कि पि किर वत्थु सुपसत्थु
गयणाउ निववंति कुसुमइँ विचित्ताइँ । महि घिवहिँ अप्पाणयं मुणियसिक्खाइँ। जिण खीरसायरतरंग व्व दीसंति । चिरुपुण्णपवणेण संचलइ कयसोहु । पवियंभए परममहवीरजिणवाणि। ५ नियनियहिँ भासाहिँ परिणमइ सव्वस्स। तं तं तहिं निहिउ आणेवि सव्वत्थु ।
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