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________________ १३. ५. ४ ] ' कहको [ १५३ तुहुँ जाहँ पयासहि भत्तिभरु गुणगुरुहुँ ताहँ हउँ अहिययरु । कज्जेण तेण मइँ दिन्न सिही रोसेण नाह नउ नायविही । एत्थत्थि सुणिज्जउ देव कहा वच्छाजणंति कयवइरिवहा । कोसंबी नामें अत्थि पुरी सुंदरपएसमय सोक्खयरी। पयपालु पयाहिउ पुहइवई जसमइ महएवि मरालगई। वणि सायरदत्तु धणाहिवई गेहिणि तो वसुमइ नाम सई । तहिँ अत्थि समुद्ददत्तु अवरु वणिवरु समुद्ददत्ताहे वरु । अन्नोन्नु ताहँ मित्तत्ति हुय बहुकालि परमपीईए जुय । एक्कहिँ दियहम्मि अईवसुही सायरदत्तेण पवुत्तु सुही । घत्ता-गुणमंदिर नयणाणंदिर मित्त परोप्परु नेहगइ ।। न नियत्तइ सुइरु पवत्तइ जिह तिह करइ विसुद्धमइ ॥३॥ ५ जइ जम्मइ भज्जय पुत्ति तुह ता देवी महु तणयहो सुमुह । अह मज्झ तुज्झ तो नंदणहो देसमि फुडु नयणानंदणहो । पडिवन्नु बिहिँ मि कालेण हुउ वसुमइयहि गब्भि भुयंगु सुउ । इयरेण वि रंजियजणमणउ पालिउ पडिवन्नउ अप्पणउ । तर्हा नायदत्त नामेण सुया सप्पो वि समप्पिय ललियभुय । बहुदियहहिं पीणघणत्थणिया पुच्छिय जणणी सनंदणिया । कहि केरिसु पुत्तिए तुज्झ वरु ता कहिउ ताण तारुण्णधरु । निसिसमए सो पुणु होइ नरु पुणरवि दिणम्मि फणि जणियडरु । कलिकालोवमु तणु संवरिवि अच्छइ पेट्टारण पइसरेवि । घत्ता-इय वत्त वियसियवत्तण भणिउ जणेरिण करमि तिह । दिहिगारउ कंतु तुहारउ पुरिसु सया वि हु होइ जिह ॥४॥ इय भणिवि समुद्ददत्त घरहो थिय तत्थ जाम पच्छन्नतणु नीसरिउ मुएप्पिणु कंचुयउ नं कामएउ विहिणा विहिउ . . गय रयणिसमग्र दुहियावरहो । इम लक्खइ जेम न को वि जणु । वसुमइहे पुत्तु ता नरु हुयउ । सहुँ सेज्जन समउ पियार थिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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