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१३. ५. ४ ] '
कहको
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तुहुँ जाहँ पयासहि भत्तिभरु
गुणगुरुहुँ ताहँ हउँ अहिययरु । कज्जेण तेण मइँ दिन्न सिही
रोसेण नाह नउ नायविही । एत्थत्थि सुणिज्जउ देव कहा
वच्छाजणंति कयवइरिवहा । कोसंबी नामें अत्थि पुरी
सुंदरपएसमय सोक्खयरी। पयपालु पयाहिउ पुहइवई
जसमइ महएवि मरालगई। वणि सायरदत्तु धणाहिवई
गेहिणि तो वसुमइ नाम सई । तहिँ अत्थि समुद्ददत्तु अवरु
वणिवरु समुद्ददत्ताहे वरु । अन्नोन्नु ताहँ मित्तत्ति हुय
बहुकालि परमपीईए जुय । एक्कहिँ दियहम्मि अईवसुही
सायरदत्तेण पवुत्तु सुही । घत्ता-गुणमंदिर नयणाणंदिर मित्त परोप्परु नेहगइ ।।
न नियत्तइ सुइरु पवत्तइ जिह तिह करइ विसुद्धमइ ॥३॥
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जइ जम्मइ भज्जय पुत्ति तुह
ता देवी महु तणयहो सुमुह । अह मज्झ तुज्झ तो नंदणहो
देसमि फुडु नयणानंदणहो । पडिवन्नु बिहिँ मि कालेण हुउ
वसुमइयहि गब्भि भुयंगु सुउ । इयरेण वि रंजियजणमणउ
पालिउ पडिवन्नउ अप्पणउ । तर्हा नायदत्त नामेण सुया
सप्पो वि समप्पिय ललियभुय । बहुदियहहिं पीणघणत्थणिया
पुच्छिय जणणी सनंदणिया । कहि केरिसु पुत्तिए तुज्झ वरु
ता कहिउ ताण तारुण्णधरु । निसिसमए सो पुणु होइ नरु
पुणरवि दिणम्मि फणि जणियडरु । कलिकालोवमु तणु संवरिवि
अच्छइ पेट्टारण पइसरेवि । घत्ता-इय वत्त वियसियवत्तण भणिउ जणेरिण करमि तिह ।
दिहिगारउ कंतु तुहारउ पुरिसु सया वि हु होइ जिह ॥४॥
इय भणिवि समुद्ददत्त घरहो थिय तत्थ जाम पच्छन्नतणु नीसरिउ मुएप्पिणु कंचुयउ नं कामएउ विहिणा विहिउ . .
गय रयणिसमग्र दुहियावरहो । इम लक्खइ जेम न को वि जणु । वसुमइहे पुत्तु ता नरु हुयउ । सहुँ सेज्जन समउ पियार थिउ ।
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