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संधि १३
सिरिसेविण चेल्लणदेविश कालें जंतें मलविलउ ।
संजणियउ नामें भणियउ वारिसेणु सुउ गुणनिलउ ।। देविण सुदृट्ठपरिणामुजुउ
कोणिउ नामेण पसूउ सुउ । नरनाहु विण्हुधम्मम्मि रउ
चेल्लण पर मन्नइ जिणसमउ । अन्नोन्नु ताहँ दोहं वि सया
बहुधम्मविवाएँ दिवस गया। एक्कहिँ दिणि सकसाएण पिया
रोसेण भणिय गयमंदगया। पुरिसहुँ गुरु निच्छउ विप्पयणु
महिलहे भत्तारु न अन्नु पुणु । चिरपुरिसपयासिउ एउ जए
दुग्गइ हवेइ एयम्मि हए । किं बहुणा जो महुँ देउ गुरु
सो तुज्झि विसेसें दुरियहरु । भत्तिा पाराहणिज्जु हवइ
निसुणेवि एउ चेल्लण चवइ। अँ गुरुहुँ विणउ पिय मणहि तुहुँ
तं सव्वु अवस करणिज्जु महु । घत्ता-इय घोसिवि पइ परिप्रोसिवि सइँ आमंतिवि धुत्तियए।
प्राणिय गुरु बहुलच्छीहरु अन्नहिँ वासरि भगव तए ॥१॥
१०
अब्भतरु पय विच्छुलिवि निया
गंधक्खयपुप्फहिँ पुज्ज किया। अवयरह सयं इय विण्हुपया
इय भणेवि तिन्नि वाराउ तया । देप्पिणु अग्घंजलि लाइयउ
सिहि जलिउ पट्टे सुहि साइयउ । झाणासणु मेल्लिवि गाढभया
सहसत्ति पलाइवि सयल गया। निसुणेप्पिणु पुहईसेण पिया
कुविएण भणिय जिणधम्मपिया। ५ साविय भणेवि जइ अन्नु नउ
पडिहासइ धम्मायरणु तउ । तो भुक्खतिसासमसमियतणु ।
विहिँ पहरहिँ आणेप्पिणु भवणु । खभालहुँ कि हलि महु तणउ
जुज्जइ तवसीयणु बहुगुणउ । पहुवयणु सुणेप्पिणु राणियए
भासिउ विणएण सयाणियए । घत्ता–वं छज्जइ जं रूसिज्जइ पावेप्पिणु कारणु रमण ।
__ निक्कज्जउ जणियावज्जउ कोवु न किज्जइ अरिदमण ॥२॥ २. १ पत्त।
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