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१२. २२. १४ ] '
कहकोसु
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खंडयं-एयं मइवरभासियं सुणिवि निवेण पसंसियं ।
वयणकमलु मइसारहो जोइउ अभयकुमारहो ॥ दिट्ठी वियाणिवि तायचित्तु
पणवेप्पिणु पय पुत्तेण वुत्तु । एत्तियहँ मज्झि अहमेक्कु धन्नु
पइँ जासु सामि आएसु दिन्नु । इय भणिवि लिहाविवि पडि कुमार पडिबिंबु जणेरहो लेवि चारु। ५ वणिवेसे होइवि सत्थवाहु
बहुवक्खरु बहुजणवयसणाहु । दियहेहिँ तत्थ संपत्तु दिठ्ठ
बहुरयणहिँ चेडयणिवु वरिठ्ठ । तेण वि सम्माणु करेवि वुत्तु
किं किज्जइ दिज्जइ कहि निरुत्तु । सो भणइ नाह नायाणुचारि
तुह पायमूलि उम्मूलियारि । इच्छमि कयविक्कउ करहुँ एत्थु
ठाएण पसाउ हवउ पसत्थु । १० ता राएँ नियनिलयो निवासु
आसन्न दिन्नु सइँ संपयासु। घत्ता-बहुकेणयसारउ [अभयकुमारउ] करइ असेसकलासु गुणि ।
कयविक्कउ बप्पो कारणि अप्पो नाउँ धरेप्पिणु बोदु वणि ॥२१॥
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खंडयं-जो कोइ वि तत्थत्थिनो जो केण वि कज्जत्थियो ।
तं तं तस्स विणा धणं देइ सया रंजइ जणं ॥ हुउ पुरि पसिद्ध गुणु सव्वु कोइ
गेण्हइ अह दाणे किं न होइ । जाएप्पिणु तग्गुणरंजियाहिँ
चेल्लणहे कहिज्जइ लंजियाहिँ । परमेसरि एत्थायउ अउव्वु
नामें वणि बोदु अईवभव्वु । पडि लिहिउ रूउ सोहग्गभारु
दुक्करु जइ तारिसु होइ मारु । अच्छइ तर्हा केरउ सामिसालु
तं पुज्जइ पणमइ सो तिकालु । जणवच्छलु कयविक्कउ करेइ
जो जं मग्गइ तं तासु देइ । कोऊहलेण तं सुणिवि कन्न ।
बिभियमण तत्थागय सुवन्न । चित्तवडु निएप्पिणु जणियखेउ
पवियंभिउ माणसि कामएउ। आसन्नहूय गुणगोयरी
पेक्खइ तं चंदण सोयरीण। संजायरूढि अणुदियहु एइ
इयरो वि हु सेणियगुण कहेइ । घत्ता-एक्कहिँ दिणि रत्तर सो एक्कंतण भणिउ ताग गयगामियहो ।
विरहेण म मारहि मइँ साहारहि नेहि पासु नियसामियहो ।।२२॥
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