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________________ १२. २२. १४ ] ' कहकोसु [ १४६ खंडयं-एयं मइवरभासियं सुणिवि निवेण पसंसियं । वयणकमलु मइसारहो जोइउ अभयकुमारहो ॥ दिट्ठी वियाणिवि तायचित्तु पणवेप्पिणु पय पुत्तेण वुत्तु । एत्तियहँ मज्झि अहमेक्कु धन्नु पइँ जासु सामि आएसु दिन्नु । इय भणिवि लिहाविवि पडि कुमार पडिबिंबु जणेरहो लेवि चारु। ५ वणिवेसे होइवि सत्थवाहु बहुवक्खरु बहुजणवयसणाहु । दियहेहिँ तत्थ संपत्तु दिठ्ठ बहुरयणहिँ चेडयणिवु वरिठ्ठ । तेण वि सम्माणु करेवि वुत्तु किं किज्जइ दिज्जइ कहि निरुत्तु । सो भणइ नाह नायाणुचारि तुह पायमूलि उम्मूलियारि । इच्छमि कयविक्कउ करहुँ एत्थु ठाएण पसाउ हवउ पसत्थु । १० ता राएँ नियनिलयो निवासु आसन्न दिन्नु सइँ संपयासु। घत्ता-बहुकेणयसारउ [अभयकुमारउ] करइ असेसकलासु गुणि । कयविक्कउ बप्पो कारणि अप्पो नाउँ धरेप्पिणु बोदु वणि ॥२१॥ . ५ खंडयं-जो कोइ वि तत्थत्थिनो जो केण वि कज्जत्थियो । तं तं तस्स विणा धणं देइ सया रंजइ जणं ॥ हुउ पुरि पसिद्ध गुणु सव्वु कोइ गेण्हइ अह दाणे किं न होइ । जाएप्पिणु तग्गुणरंजियाहिँ चेल्लणहे कहिज्जइ लंजियाहिँ । परमेसरि एत्थायउ अउव्वु नामें वणि बोदु अईवभव्वु । पडि लिहिउ रूउ सोहग्गभारु दुक्करु जइ तारिसु होइ मारु । अच्छइ तर्हा केरउ सामिसालु तं पुज्जइ पणमइ सो तिकालु । जणवच्छलु कयविक्कउ करेइ जो जं मग्गइ तं तासु देइ । कोऊहलेण तं सुणिवि कन्न । बिभियमण तत्थागय सुवन्न । चित्तवडु निएप्पिणु जणियखेउ पवियंभिउ माणसि कामएउ। आसन्नहूय गुणगोयरी पेक्खइ तं चंदण सोयरीण। संजायरूढि अणुदियहु एइ इयरो वि हु सेणियगुण कहेइ । घत्ता-एक्कहिँ दिणि रत्तर सो एक्कंतण भणिउ ताग गयगामियहो । विरहेण म मारहि मइँ साहारहि नेहि पासु नियसामियहो ।।२२॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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