________________
१४८ ]
व भव्व
चेल्लरण नामेण तहि तेण एउ कयपयसिवेण मइँ सब्बु समारिउ तो त्रिदेव
ता चिततो दइवेण घडिउ
खंड – तस्स सुद्दा नामिया जाया ता किसोरी
हुउ रूउ सरूउ निएवि राउ तहो प्रत्थि चित्तु पुत्ति समेउ निसु वि एउ नासेवि रत्ति कि बहुणा सा सारंगनेत्त
सिरिiवविरइय
१९
खंडयं - प्रायण्णेवि
Jain Education International
प्रत्थाणु विसज्जिवि मंतगेहि परिपुच्छिउ मयणाउरमणेण कह कहमुवलब्भइ सा कुमारि पहुवणु सुप्पिणु पहयभंति तुज्झुवरि राउ सो असंमभावि अहवा जइ प्रवहत्थियवलेण न वियाणहूँ तो कि होइ तेत्थु संसतुला पणियं प्रवज्जु जो जिप्पइ सो खलु बलविणासु इय जाणिव किज्जइ देव तेम सिज्झइ नएण जं नउ बलेण
घत्ता -- किं किज्जइ बहुयहिँ पत्थिव बहुयहिँ तिजगुक्कोइयकामसिहि । वर एक्क विसारी पाणपियारी अणुवमगुणलायण्णनिहि ॥ १९ ॥
२०
उत्तयं
हुउ नरवइ प्रणुरत्तो
[ १२.१९.१
वल्लह भज्ज सनामिया । एसा सामिय सुंदरी ॥
उवमिज्जइ कहो पहयारिगव्व । हउँ रूउ लिहाविउ पत्थिवेण । पर केमवि भावहो एइ नेव । सिविंदु गुज्झि लेहणिहे पडिउ । सकसाय भावु मज्झुवरि जाउ । इरहँ कह बुझइ गुज्झभेउ । पडु लेवि प्राउ हउँ एह झत्ति । तु जग्गी वरस्यवत्तवत्त ।
एयं पीणियसोत्तयं । कामपरव्वसचित्तो ॥
घत्ता - पहुनु न किज्जइ तहिँ एसिज्जइ बुद्धिवंतु कोइ वि पुरिसु । भोलेवि स सुंदरि भुयणमणोहरि जो प्राणइ पयणइ हरिसु ||२०||
For Private & Personal Use Only
५
वइसेवि समंति विचित्तसोहि । सिद्धत्थनामु पालियजणेण । विणुता असं विरहमारि । प्रायण्णहि भूवइ भणइ मंति । मत देइ न सुय कयावि । प्पिइ कुमारि गंपिणु बलेण । सोवियईव सामिय समत्थु । विरयति सुमइ न कयावि कज्जु । १० ग्रह हारप्पइ तो लोयहासु । अहि मरइ न भज्जइ लट्ठि जेम । साहिज्जइ तं निच्छउ छलेण ।
१०
५
१५
www.jainelibrary.org