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________________ १५० ] सिरिचंदविरइया 1 १२.२३.१ २३ खंडयं-तं निसुणेवि निवंगया तेणाणंगवसं गया। मं भीसहि मइदरिसिणा भणिय कवडवणिणा तिणा ॥ पडिवालहि कइ वि दिणाइँ भद्दि जा करमि उवाउ पसन्नसद्दि । इय भणिवि समालोइवि मणेण वाहरिवि भणिउ नियखणउ तेण । तेण वि कुमारिभवणंतु जाम किय तुंग सुरंग मणोहिराम । ५ जेट्ठाण समेउ सहोयरीण नीसरिय कुमारि विहावरी । विन्नाणकलालायन्नजेट्ठ जगजुवईयहुँ उप्परि वि जे? । जहिँ अच्छइ तिहुयणमणु हरंति तहिँ अम्हारिसियउ किं करंति । सुंदरयर जहिँ छणयंदकंति तहिँ तारियाउ कहिँ विप्फुरति । इय चितिवि परमणमेल्लणाट विणएण भणिय सा चेल्लणाए। १० वीसरिय अक्कि जायाहिसेय' सव्वण्हुपडिम कयदुरियछेय । अइदुल्लहु जणमणजणियचोज्जु अवरु वि करंडु मणिमउ मणोज्जु । घत्ता-गुणनिहि लहु धावहि लेप्पिणु आवहि ख्यपरज्जियरइपियहो । दूरुज्झियचिंतउ वे वि तुरंतउ मिलहुँ जेण गंपिणु पियहो ॥२३॥ २४ खंडयं-अायण्णेप्पिणु सोयरी वयणमिणं गुणगोयरी । अवियाणंती वंचणं गय पल्लट्टिवि सभवणं ।। एत्वंतरि वणिउ सलक्खणाण निवपुत्तिए वुत्तु वियक्खणाण । म चिरावहि प्रावहि चारुचित्त को जाणइ केरिसु होइ मित्त । भयभीयहे विहियपियासयाहि किं आवहु जाइ न जाइ ताहि । ५ निसुणेवि एहु चितवइ बोदु अइलोहु कयाइ न होइ भदु । अइलोहें मत्था भमइ चक्कु अइलोहें पडइ अकालचक्कु । किं लाहे मूलु वि गलइ जेण इय चितिऊण सुंदरमणेण । नीसरिउ कुमारि लएवि झत्ति नं चेडयरायही तणिय कित्ति । जामावइ जेट्ठा पडिम लेवि ता नियइ न ताइँ गयाइँ वे वि। १० विलवंति विलक्खी होवि कण्ण गय जिणवरभवणु सुवण्णवण्ण । घत्ता-तहिँ निज्जियकामहि जसमइनामहिँ पिउवहिणिहे वेल्लहलभुय । पयमूलि महासइ सिंधुरवरगइ हुय तवसिणि भव्वयणथुय ॥२४॥ २३. १ जज्जाहितेय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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