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________________ १२. ११. ४ ] , कहकोसु [ १४३ धी.रउ थिरु थाहि म करहि खेउ महु लग्गइ निच्छउ माम एउ। इस भर्णवि थोवदियहेहिँ तेण णिप्पाइउ णियणिउणत्तणेण। एत्थंतरे वसिकयणिरवसेसु परिपुण्णमणोरहु णरवरेसु । आयउ अणेयविहभेयकम्म पासाउ णिएवि अईवरम्मु। १० पुच्छइ हसेवि संजायचोज्जु केणेरिसु किउ मंदिर मणोज्जु । ता कहिउ सोमसम्मेण सब्बु जो करइ णत्थि सो कोइ भन्छ । पासाउ अणोवमु एहु देव किउ महु जामाएँ सुयणसेव । घत्ता-तं सुर्णवि नरिंदें विहियाणंदें भासिउ जो जामाउ तुह । सो मज्झ वि जामाइउ गुणहिँ विराइउ एव भणेवि पसण्णमुह ।।॥ १५ खंडयं-णाइँ मणोभवसत्तिया णामेणं वसुमित्तिया । सव्वसलक्खणगत्तिया दिण्ण तासु णियपुत्तिया ।। सहँ दोहिँ ताहिँ सेणिउ कुमार सोहइ रइपीइहिँ णाइँ मारु । णावइ विहिँ करणिहिँ करिवरिंदु णं खंतिदयाहिँ महामुणिंदु । अच्छइ तहिँ भोयासत्तु जाम एत्तहे वि तासु ताएण ताम । ५ दाऊण चिलायसुयस्स रज्जु धीरेण अणुट्ठिउ अप्पकज्जु । संजायउ राउ चिलायपुत्तु। सो करइ कयावि न कि पि जुत्तु । ता मंतिहिँ दूउ लहेवि सुद्धि संपेसिउ कंचीपुरु सुबुद्धि। गंतूण तेण सुप्पहसुयासु उवएसिउ वइयरु णिवसुयासु । रज्जम्मि थवेवि चिलायपुत्तु संजायउ ताउ मुणी तिगुत्तु । १० सयल वि पय रज्जु करंतएण संताविय तेण कयंतएण। किं बहुणा गच्छहुँ एहि सिग्घु कुरु रज्जु णिवारहि लोयविग्घु । घत्ता-जणवल्लह पोमिणि जिह गयगोमिणि परिपीडिय दोसायरेण । संभरइ पहायरु देउ दिवायरु तिह पइँ पय परमायरेण ॥१०॥ खंडयं-अभयमईवसुमित्तउ रायाणं संपुरोहियं गंपिगु चप्पेवि चिलायपुत्तु सुहदिणे सुहिसयणहिँ बद्ध पटु पुच्छेवि कंतो कंतउ। आयउ सो णिलयं णियं । णीसारेवि घल्लिउ अणयजुत्तु । सुंदरमइ अरिगयघडघरटु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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