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________________ १४४ ] सिरिचंदविरइयउ [ १२. ११. ५तोसेवि सुवयणहिँ सव्वलोय थिउ रज्जे दिव्व भुंजंतु भोय । ५ एत्तहे अभएण मणोज्जवाय आउच्छिय एक्कहिँ दिणे समाय । सव्वेहिँ मि सुंदरु सव्वु कालु सुमरिज्जइ जो नरगुणगणालु । सो कहहि कत्थ महु तणउ ताउ अच्छइ जणेरि जणियाणराउ । ता कहिउ ताण अवगुणणिसेहि तुह ताउ पुत्त पुरे रायगेहि । सग्गम्मि व रज्जु करंतु इंदु अच्छइ सुहेण पहयारिविंदु'। १० उक्कंठियमणु णिसुणेवि राउ पुच्छप्पिणु मायरि ण किउ खेउ । णिग्गउ कुमारु णयणाहिरामु संपत्तउ दियहहिँ णंदिगामु । तत्थ वि एकत्थ विसण्ण सव्व दिय मिलिय णिहालेवि गलियगव्व । पुच्छिय किं कारणु मलिणवत्त दीसह सव्वे वि विसण्णचित्त । घत्ता-तेहिँ वि तहो अक्खिउ गुज्झु न रक्खिउ अत्थि एत्थ संपयपउरे।। प्रसिदूसहु धामें सेणिउ णामें पुहईसरु रायगिहपुरे ॥११॥ १२ खंडयं-तस्सम्हे सिहिहोत्तिया सताणागयसोत्तिया । रायपरंपरपुज्जिया जत्थ सया भयवज्जिया ॥ अच्छहुँ कुमार धणकणयसारु भुज्जइ इउ अम्हहँ अग्गहारु । संपइ ण वियाणहुँ काइँ एउ किउ राएँ अम्हहँ वइरिखेउ । दुक्करु अईव आएसु दिन्नु तें थाणु सव्वु चिंतापवन्नु। - ५ किं करहुँ किमुत्तर देहुँ तासु ता पुच्छइ नंदणु सेणियासु । केरिसु आएसु कहेह जेण संगहिया तुम्हि महाभएण। निसुणेवि एउ भासंति विप्प जं पुच्छिउ तं प्रायण्णि वप्प । वडकूउ तुम्ह गामे सुभोउ निसुणिज्जइ सुठ्ठ सुसायतोउ । लहु पेसह सो पुरु मज्झ पासु अह नं तो तुम्हहँ करमि नासु। १० इय भणेवि पुरिसु पेसिउ निवेण संजाया आउलचित्त तेण । घत्ता-मइसंपयसारे एउ कुमार प्रायण्णेप्पिणु विप्पयणु । धीरिउ मा वीहहो निवर्हा दुरीहहो हउँ देसमि तो पडिवयणु ।।१२।। खंडयं–एम भणेविण सोहणा सिक्खवेवि वे माहणा' । पट्टविया परमेसरो गंपि तेहिं पुहईसरो ॥ ११. १ पयारिविंदु। १३. १ मोहणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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