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________________ १४२ ] सिरिचंदविरइयां । १२. ७. ६किं पि वि पउ धोवह इय भणेवि सई अप्पिउ आसणपटु देवि ।। तेण वि कंबी वियक्खणेण अवणेप्पिणु खंजणु तक्खणेण । । १० उग्घोडिवि थोवजलेण पाय पक्खालेवि परमसुवण्णराय । अवसेसु समप्पिउ सलिलु ताह णिउणत्ताणंदियमाणसाहे। धत्ता-भुत्तुत्तरकालण भासिउ बाला लज्ज मुएप्पिणु सुंदरहो। कुलकमु णिव्वाहहुँ देहि विवाहहुँ मइँ जणेर पायऱ्या वरहो ॥७॥ ५ खंडयं-जाणेप्पिणु प्रासत्तिया तेण णिरुत्तं पुत्तिया। __ सोहणदियह रवण्णिया करेवि महुच्छउ दिण्णिया ।। सहुँ ताण तत्थ सो णिवकुमारु णावइ रईइ रइसोक्खु मारु । माणंतु अणोवमु गुणणिवासु अच्छइ अणेयविहमइपयासु। एत्तहे विलवंतीवणे मरेवि जो बंभणु अणसणविहि करेवि। पावेप्पिणु वणियहां कण्णजाउ सोहम्मसग्गे सुरु पवरु जाउ । अभयमइहे अभयकुमारु णामु सो सुउ संजाउ मणोहिरामु । एत्थंतरे दिग्विजयहो गएण णिण्णासियतासियअरिसएण । परदेसे एयथंभेण हम्म वसुपालणिवेण अईवरम्मु । दट्ठण पडम्मि लिहेवि देवि संपेसिउ पुरिसु इणं भणेवि । कहि गंपि सोमसम्मस्स वत्त जामेमि करेप्पिणु विजयजत्त । तामेरिसु राउलमझ जेम सिज्झइ पासाउ करेसु तेम। तत्थाविऊण जिह णरवरेण उवइठ्ठ पयासिउ तिह णरेण । घत्ता-सयलावइरोहें सुणिवि पुरोहें रायवयणु अहिणंदियउ । सम्माणिवि किंकर संपेसिउ घर विण्णाणियकुलु सद्दियउ ॥८॥ १५ खंडयं-प्राणेप्पिणु पड़ दावियउ तेहिं वि सो परिभावियउ । भणियं णो विण्णाणिया एत्थम्हे अण्णाणिया ॥ किं बहुणा एउ अउव्वु कम्मु सयमेव करइ जइ विस्सकम्मु। गय एम भणेप्पिणु ते सहम्मु . चिंतापवण्णु हुउ सोमसम्मु । किं किज्जइ सिज्झइ जेण एउ णं तो रूसेसइ एवि देउ । ता बहुविण्णाणविराइएण णिसुणेवि वत्त जामाइएण । .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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