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________________ १.२ ७. ८ ] कहको संपत्ता कंचीनयरु वे वि गउ घरु तं पुरबाहिरु थवेवि। १० घत्ता-परिप्रोसियसज्जणु दूमियदुज्जणु मिलिउ कुडुबो विप्पवरु । पुच्छिउ अभयमईए विउलमईए पइँ सहुँ को प्राइउ अवरु ॥५॥ खंडयं-भासइ सो पुरिसो सुए आयउ एक्को गुणजुए। वाउलो अन्नाणिो तेण मया सो णाणियो ।। एत्थाउ भणेसइ अट्टसट्ट पुच्छइ सुय केरिसु कहइ भट्ट । निसुणेवि खंधवहणाइ सव्वु पभणइ कुमारि सो ताय भव्वु । नउ होइ गहिल्लउ नायसत्थु अायण्णहि उज्जुय कहमि अत्थु । ५ जं खंधारुहणे जाणु तेण वुत्तउ अन्नोन्नु वियक्खणेण । तं परिसुत्तहँ कह कहहि मज्झु अहवा सुणु हउँ पायडमि तुज्झु । जइ खद्धद्धारु लएवि बप्प तो खद्ध खेत्तु फुडु निव्वियप्प । अहवा घरि संपइ-तवणि तेण तो खज्जदि एउ पउत्तु तेण । जुत्तं करेवि जइ नत्थि भंति खाएवउ तो खज्जीहदि त्ति । १० वंकुज्जुय कंटय दोन्नि वेव कुवलियह हवंति हे अन्न नेव । जइ जायपुत्त तो जुवइ बद्ध पिट्टिज्जइ अह नं तो अबद्ध । जइ दुज्झहिँ तो सेरिह पियाउ अह णं तो पाहण ताय ताउ । घत्ता-जं पार्ववि तरुतलु छायासीयलु आयवत्तु सो सिरि धरइ । तं दुरहिविमीसही कायपुरीसहो णिवडतो रक्खणु करइ ॥६॥ १५ खंडयं-खरकक्करकंटाइयं ण मुणिज्जइ दुहदाइयं । तेण जले पाणहियउ परिहइ सो पाणहियउ ।। णउ होइ गहिल्लउ गयमईउ * सो साहु सयाणउ संसणीउ । इय वयणहिँ तायो तणउ चित्तु रंजेप्पिणु पुणु धुत्तीण वुत्तु । सो बप्प विप्पणंदणु तुरंतु आणावहि इह बहुबुद्धिवंतु । ता पेसिउ पुरिसु कहेवि ठाउ तेण वि गंतूण महाणुभाउ । घर वट्टइँ कद्दमजुत्तियार आणीउ अभयमइपुत्तियाण'। तो ताण परिक्खाहेउ तासु कच्चोले करेप्पिणु मइवरासु । ७. १ पाउत्तियाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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