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१४० ] सिरिचंदविरइयउ
[ १२. ३. १३सो हउँ वि सुनिच्छउ तासु सब्बु अवियारु हरेसमि पाणदव्वु ।
घत्ता-इय देप्पिणु घोसण खलमणपोसण नीसारिउ नयरहो तुरिउ ।
__ तिसभुक्खायामिउ सिंधुरगामिउ नंदगामु सो पइसरिउ ॥३॥ १५
खंडयं-तत्थ वि भीयहिँ विप्पहिँ नीसारिउ अवियप्पहिँ ।
ता परिवायमढं गउ तेण वि अब्भागउ कउ । ण्हाविउ भुंजाविउ दिन्न वत्थ
उब्भासिय सकियायमविवत्थ । किउ बुद्धधम्मि परमाणुराउ
सुप्पहहे पुत्तु भागवउ जाउ । अच्छेवि तत्थ खलकुमयमित्तु
गउ दाहिणदेसहो धीरचित्तु । एत्तहे कंचीपुरि इंदयत्तु
निवइहे सुविप्पु कयसंतियत्तु । सुरवइनईहे ण्हाएवि एंतु
पंथम्मि सएसहो मिलिउ जंतु । पणवेप्पिणु सो सुमहुररवेण
पुच्छिउ पुहईसतणुब्भवेण । जाएसहि कहिँ ता तेण तासु
उवएसिउ कंचीपुरनिवासु । विप्पेण वि पुच्छिउ तुम्ह कत्थ
कुमरेण कहिउ तेत्थु जि पसत्थ । १० इय वयणहिँ विहिँ वि सिणेहु जाउ
थेवेंतरि पुणरवि रायजाउ । आहासइ भो सप्पुरिस मज्झ
चडि खंधि अह व हउँ चडमि तुज्झ । सोक्खेण जेण नित्थरहुँ पंथु
निसुणेवि एउ अवियाणियत्थु । घत्ता-चिंतइ नउ भल्लाउ एहु गहिल्लउ पंथरीणु निरु फुट्टपउ ।
कि पि वि न वियप्पइ तेण पयंपइ वयणु एउ उवहासपउ ॥४॥ १५
खंडयं-अंतरंगि एयंविहु णेविज्जिवि तुण्हिक्कु थिउ ।
पहि एक्कं बहुकणभरं खेत्तु निएवि मणोहरं ।। पुच्छइ कुमारु किं खद्ध खेत्तु
किं खज्जदि खज्जीहदि निरुत्तु । कइ कंटय वोरिहे कहसु ताय
किं महिसिउ पहणइ एसु वाय । किं बद्ध एह अहवा विमुक्क
पिट्टिज्जइ वहु अवराहढुक्क । ५ बहु एवमाइ पुच्छंतु जाइ
पर तो वि किं पि न चवइ सुजाइ । तरुमूलि सिरोवरि धरइ छत्तु
पहि खंधहिँ विसहइ उण्हवत्तु । पहि पाणहियउ पाणिहिँ करेइ
जलि परिहेप्पिणु [पुणु] उत्तरेइ । पेच्छंतु एउ उत्तर न देंतु
गच्छइ कुविप्रो कोहें जलंतु । ५, १ एयं वि णेविज्जिवि। २ तुहिक्के ।
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