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________________ ११. २१. ६. ] कहकोसु । १३५ तो निच्छउ अप्पउँ संघारमि भुवर्ण अकित्ति तुज्झ वित्थारमि । अहवा मा वच्चसु रुद्दाल उ हउँ मि न जामि कंत चइतालउ । एव भणेवि वे वि मज्जायण संठियाइँ नियनियए निग्रोय । . घत्ता-अच्छंतहँ एव ताहँ भवणि आवेप्पिणु तामक्कम्मि दिणि । १० पुरु वेढिवि भिल्लहिँ लाइयउ जणु सयलु किलेसहुँ आइयउ ।।१९।। २० पयडु हवेवि जलंतजलंतउ आलोएवि समाउल चित्तउ एत्तिउ कालु धम्मसंवाएँ तो वि नाह मइँ तुज्झुवएसिउ संपइ जो प्रायही उवसग्गो भत्तिभरेण तमेवाराहमि आयण्णेवि एउ बोल्लइ वरु किं बहुणा महु एव पउत्तउ तिउरहारिं मेल्लेवि कि अन्नही करणधरणसंहरणसमत्थउ अन्नु कवणु चउदहभुवणासिउ घत्ता-ता जिणमई गंधक्खयहिँ देप्पिणु हत्थेसु अग्घु रमणु रुद्ददत्तघरु सिहिसंपत्तउ । जिणमईइँ भत्तारु पउत्तउ । गउ अम्हहँ अन्नोन्नविवाएँ। किउ न कयाइ मज्झ पइँ भासिउ । रक्खइ सो पहु देउ समग्गो । ५ निच्छउ तासु धम्मु पडिगाहमि। भासिउ भज्जे अईव मणोहरु । परमं दावमि मग्गु निरुत्तउ । अत्थि सत्ति रक्खहुँ सामन्नहो । अन्नु कवणु पयडियपरमत्थर । १० अन्नु कवणु सव्वगउ सयासिउ । सुहसलिलें कुसुमहिँ चोक्खहिँ । धुत्तीश भणिउ धुवकरचरणु ॥२०॥ आयो उवसग्गहु उव्वारहि एव भणेप्पिणु पहयाट्ठिो देहि अग्घु एयग्गु हुवेप्पिणु पुवमुहेण तेण गुरुसद्दे लोयकम्मसाखिज्ज'पवन्नहीं जइ माहेसरधम्मु महंत उ सुमरणमित्तेण वि भमु फिट्टइ निरु निम्मल कम्मक्खयकारी तो ससहोयर पुत्तकलत्तउ सकुडुंबु वि सामिय साहारहि । देवहीं पय पणवेप्पिणु इट्टहो । एउ सभामिणिवयणु सुणेप्पिणु । भासिय चित्ति विचितियरुदें। पंचलोयवालहो आयत्नहो । जइ देवाहिदेउ सिवसंतउ । जइ इच्छाइ तासु जणु वट्टइ । जइ निव्वाणदिक्ख तो सारी। मई परितायउ पलयही जंतउ । २. १ साखि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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